कांग्रेस पार्टी, जो खुद को देश की सबसे पुरानी और बड़ी विपक्षी पार्टी बताती है, अक्सर सत्ता में बैठी सरकार के खिलाफ तीखे बयान देती नजर आती है। लेकिन, जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, वहां भी हालात क्या हैं? आज हम बात करेंगे रायबरेली के उड़वा गांव की, जिसे कभी सोनिया गांधी ने गोद लिया था। लेकिन, 10 साल बाद भी इस गांव की हालत बदली नहीं है।
सोनिया गांधी का वादा और उड़वा गांव की हकीकत
साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ के तहत तत्कालीन सांसद सोनिया गांधी ने रायबरेली के उड़वा गांव को गोद लिया था। उन्होंने वादा किया था कि इस गांव की दशा बदल जाएगी। लेकिन, 10 साल बीत जाने के बाद भी उड़वा गांव विकास से कोसों दूर है।
आज रायबरेली के सांसद राहुल गांधी हैं। सोनिया गांधी ने चुनाव न लड़ने का फैसला करते हुए कहा था कि वे रायबरेली की जिम्मेदारी अपने बेटे को सौंप रही हैं। लेकिन, उड़वा गांव के लोगों का कहना है कि न तो सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी ने इस गांव की सुध ली है।
गांव की हालत: विकास के नाम पर ठेंगा
उड़वा गांव के लोग छोटे व्यवसाय और खेती-बाड़ी से गुजर-बसर कर रहे हैं। गांव में न तो अच्छी शिक्षा की व्यवस्था है और न ही स्वास्थ्य सेवाएं। यहां कोई इंटर कॉलेज नहीं है, और लोग रोजगार और बेहतर जीवन के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं।
गांव के लोगों का कहना है कि उन्होंने कांग्रेस को वोट दिया, लेकिन बदले में उन्हें विकास के नाम पर कुछ नहीं मिला। सरकारी योजनाओं का लाभ भी गांव तक ठीक से नहीं पहुंच पाया है।
राहुल गांधी और कांग्रेस की जिम्मेदारी
राहुल गांधी, जो अक्सर गरीब किसानों और दलितों के हक की बात करते हैं, उनसे यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र के इस गांव की सुध क्यों नहीं ली? वे कभी गरीब किसान के घर जाते हैं, तो कभी दलित मोची के जूते साफ करते हैं, लेकिन उड़वा गांव में क्यों नहीं जाते?
कांग्रेस पार्टी, जो संविधान और विकास की बात करती है, उसे यह समझना होगा कि जनता को सिर्फ बड़े-बड़े वादे नहीं, बल्कि जमीनी विकास चाहिए। अगर कांग्रेस अपने ही संसदीय क्षेत्र में विकास नहीं कर सकती, तो वह देश के बाकी हिस्सों के बारे में कैसे सोच सकती है?