ऑपरेशन सिंदूर को लेकर जहां देश में खुशी का माहौल है. वहीं, कुछ लोगों का पाकिस्तानी प्रेम भी जाग रहा है. ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के मेरठ में सामने आया है. यहां एक युवक को पुलिस ने पाकिस्तान समर्थित पोस्ट के सिलसिले में गिरफ्तार किया है.
ऐसे सामने आया मामला
आरोपी युवक का नाम जैद है और वो कोतवाली क्षेत्र का निवासी है. आरोपी सिविल लाइंस में मयूर सैलून में काम करता है. जैद का पाकिस्तानी प्रेम तब सामने आया जब एक स्थानीय सभासद को इंस्टाग्राम पर उसकी पोस्ट मिली, जिसमें पाकिस्तान जिंदाबाद जैसे भड़काऊ नारे लिखे हुए थे. इसके बाद सभासद ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर सिविल लाइंस थाने में शिकायत दर्ज की. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत जैद को हिरासत में ले लिया.
पाक को लेकर गुस्सा
पुलिस आरोपी के सोशल मीडिया अकाउंट की जांच कर रही है. भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के मद्देनजर सोशल मीडिया पर भड़काऊ और भ्रामक सामग्री पर कड़ी नजर रखी जा रही है. वैसे यह कोई पहला मामला नहीं है जब भारत में रहने वालों का पाकिस्तानी प्रेम उजागर हुआ है. इससे पहले भी ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं. बता दें कि पहलगाम हमले के बाद से देश में पाकिस्तान को लेकर गुस्सा है. लोग तरह-तरह से अपना गुस्सा बयां कर रहे हैं. कई जगह पर पाकिस्तानी झंडे सड़कों पर लगाए गए हैं, ताकि उसे पैरों से रौंदा जा सके.
जम्मू में भी बवाल
उधर, जम्मू के भारत माता चौक पर पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शन के दौरान एक छात्रा द्वारा सड़क पर चिपकाए गए पाकिस्तानी फ्लैग को हटाने को लेकर जमकर विवाद हुआ. एक स्कूली छात्रा ने जब प्रदर्शनकारियों द्वारा सड़क पर चिपकाए गए पाकिस्तानी झंडे को हटाया, तो बड़ी संख्या में लोग वहां एकत्रित हो गए और छात्रा को ऐसा न करने को कहा. हालांकि, छात्रा ने लोगों की एक ना सुनी और पाकिस्तानी झंडे को सड़क से हटाने लगी। छात्रा का कहना था कि यह इस्लामिक झंडा है। लोगों के रोष को देखते हुए पुलिसकर्मी तुरंत पहुंचे और छात्रा को वहां से दूर भेज दिया.
Yogi Adityanath
कर्नाटक सरकार ने हाल ही में विधायकों और विधान परिषद के सदस्यों की सैलरी में 100% की वृद्धि करने का फैसला लिया है। यह कदम उस समय उठाया गया है जब राज्य में बुनियादी ढांचे, बेरोजगारी और किसानों की समस्याएं गंभीर बनी हुई हैं। इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश में भी विधायकों और मंत्रियों को भारी भत्ते और सुविधाएं मिलती हैं। यह स्थिति इस ओर इशारा करती है कि जनता के हितों की बजाय नेताओं के हितों को प्राथमिकता दी जा रही है।
कर्नाटक में विधायकों की सैलरी में वृद्धि
कर्नाटक सरकार ने विधायकों और विधान परिषद के सदस्यों की सैलरी में 100% की वृद्धि की है। इसके तहत उनकी मासिक सैलरी 40,000 रुपये से बढ़कर 80,000 रुपये हो गई है। इसके अलावा, यात्रा भत्ता, चिकित्सा भत्ता, टेलीफोन चार्ज और अन्य सुविधाओं में भी भारी वृद्धि की गई है। उदाहरण के लिए, यात्रा भत्ता 1 लाख से बढ़कर 2 लाख रुपये हो गया है, जबकि चिकित्सा भत्ता 2,500 से बढ़कर 10,000 रुपये हो गया है।
उत्तर प्रदेश में विधायकों और मंत्रियों की सैलरी
उत्तर प्रदेश में विधायकों को मासिक 1.87 लाख रुपये का पैकेज मिलता है। इसमें मूल वेतन, क्षेत्र भत्ता, चिकित्सा भत्ता और अन्य सुविधाएं शामिल हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को प्रति माह 3.65 लाख रुपये का वेतन मिलता है, जबकि अन्य मंत्रियों को 2 से 2.5 लाख रुपये के बीच सैलरी मिलती है। इसके अलावा, उन्हें सरकारी घर, गाड़ी, सुरक्षा और यात्रा भत्ता जैसी सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं।
जनता की समस्याएं और सरकार की प्राथमिकताएं
जबकि कर्नाटक और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों में बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, सरकारें विधायकों और मंत्रियों की सैलरी बढ़ाने में व्यस्त हैं। कर्नाटक में सड़कें टूटी हुई हैं, बेरोजगारी चरम पर है और किसानों को राहत की जरूरत है। उत्तर प्रदेश में भी हालात कमोबेश ऐसे ही हैं। ऐसे में, जनता के हितों की बजाय नेताओं के हितों को प्राथमिकता देना चिंताजनक है।
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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव इन दिनों मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। रोजा इफ्तार पार्टी में शामिल होकर उन्होंने एक बार फिर अपनी मुस्लिम समर्थक छवि को मजबूत करने की कोशिश की है। हालांकि, उनकी यह रणनीति उनके हिंदू विरोधी रवैये को भी उजागर करती है। आइए जानते हैं कि कैसे अखिलेश यादव की राजनीति हिंदुओं के प्रति पक्षपातपूर्ण रही है और उनके कार्यकाल में हिंदुओं को किस तरह की प्रताड़ना झेलनी पड़ी।
रोजा इफ्तार पार्टी और मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति
अखिलेश यादव ने हाल ही में लखनऊ में आयोजित एक रोजा इफ्तार पार्टी में शिरकत की। इस दौरान उन्होंने धर्मगुरुओं के साथ खजूर का रोजा इफ्तार किया और मुस्लिम समुदाय के प्रति अपनी एकजुटता दिखाई। हालांकि, यह उनकी मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने की रणनीति का हिस्सा लगता है। उनकी यह चाल सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई और लोगों ने उन्हें हिंदू विरोधी तक कहा।
आजम खान का धर्मांतरण रैकेट
अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान ने हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाने का एक बड़ा रैकेट चलाया था। मुजफ्फरनगर में दर्जनों परिवारों ने आरोप लगाया कि आजम खान ने उन्हें धमकी देकर मुस्लिम बनवाया और उनकी जमीन-जायदाद हड़प ली। इनमें से कई लोगों ने अब हिंदू धर्म में वापसी की है और योगी आदित्यनाथ सरकार का धन्यवाद किया है।
मुजफ्फरनगर दंगे और सपा की भूमिका
अखिलेश यादव के कार्यकाल में हुए मुजफ्फरनगर दंगे उत्तर प्रदेश के इतिहास के सबसे भीषण दंगों में से एक थे। इन दंगों की जड़ में आजम खान की भूमिका थी। जब दो हिंदू भाइयों के हत्यारे मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया गया, तो आजम खान ने उन्हें छोड़ने का आदेश दिया। जब अधिकारियों ने मना किया, तो उनका तबादला कर दिया गया। इसके बाद ही दंगे भड़के और सैकड़ों लोगों की जान चली गई।
योगी सरकार और हिंदुओं की घर वापसी
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने हिंदुओं को न्याय दिलाने का काम किया है। अब तक 550 से अधिक हिंदुओं ने इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म में वापसी की है। ये लोग अब अपने समाज में सुरक्षित और खुशहाल जीवन जी रहे हैं। यह योगी सरकार की सख्त नीतियों और न्यायप्रियता का परिणाम है।
अखिलेश यादव की राजनीति हमेशा से मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने पर केंद्रित रही है। उनके कार्यकाल में हिंदुओं को प्रताड़ना झेलनी पड़ी और धर्मांतरण जैसे गंभीर मामले सामने आए। आज योगी आदित्यनाथ की सरकार ने हिंदुओं को न्याय दिलाया है और उनकी घर वापसी को संभव बनाया है। अखिलेश यादव की हिंदू विरोधी छवि और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति उनकी विश्वसनीयता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
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उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा सुप्रीमो मायावती की चिंता बढ़ती जा रही है। एक समय दलितों की सबसे मजबूत आवाज मानी जाने वाली बसपा अब अपना वोट बैंक खोती नजर आ रही है। चंद्रशेखर रावण और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नए नेताओं के उभार ने मायावती की नींद उड़ा दी है। वहीं, अखिलेश यादव का PDA फॉर्मूला भी फेल होता दिख रहा है। क्या 2027 के चुनाव में बसपा और सपा बीजेपी को टक्कर दे पाएंगी? यह सवाल अब यूपी की राजनीति का मुख्य मुद्दा बन गया है।
मायावती का संकट और बसपा का भविष्य
उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती की चिंता बढ़ती जा रही है। एक समय था जब बसपा को दलितों की सबसे मजबूत पार्टी माना जाता था, लेकिन अब स्थिति बदलती नजर आ रही है। मायावती को लग रहा है कि उनकी पार्टी का दलित वोट बैंक उनके हाथ से निकल रहा है। इसकी वजह से वह बौखलाहट में दिखाई दे रही हैं।
चंद्रशेखर और स्वामी प्रसाद मौर्य का बढ़ता प्रभाव
मायावती की चिंता का एक बड़ा कारण चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं का उभार है। ये नेता दलित समाज में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। मायावती का मानना है कि ये नेता बसपा को कमजोर करने के लिए बीजेपी की साजिश का हिस्सा हैं। हालांकि, यह भी सच है कि बसपा के कई पुराने नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं, जिससे पार्टी की ताकत कम हुई है।
अखिलेश यादव का PDA फॉर्मूला फेल
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव भी यूपी की सत्ता में वापसी का सपना देख रहे हैं। उन्होंने पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक (PDA) के समीकरण पर दांव लगाया था, लेकिन यह फॉर्मूला अब तक कामयाब नहीं हो पाया है। अखिलेश अब भी यादव और मुस्लिम वोट बैंक के भरोसे हैं, लेकिन यह रणनीति भी उन्हें सत्ता तक नहीं पहुंचा पाई है।
मायावती का बचाव और आरोप
हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायावती ने बीजेपी, कांग्रेस और सपा पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि बसपा को कमजोर करने के लिए छोटे-छोटे दल बनाए जा रहे हैं। मायावती ने दलित समाज से अपील की कि वे बसपा को ही अपना असली नेता मानें, क्योंकि यही एकमात्र पार्टी है जो उनके हितों की रक्षा कर सकती है।
क्या 2027 में बसपा और सपा को मौका मिलेगा?
2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा दोनों को ही बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। अब सवाल यह है कि क्या 2027 के विधानसभा चुनाव में ये पार्टियां योगी आदित्यनाथ की बीजेपी को टक्कर दे पाएंगी? मायावती और अखिलेश दोनों ही अपनी-अपनी रणनीतियों में उलझे हुए हैं, लेकिन जनता का भरोसा जीतने में अब तक वे सफल नहीं हो पाए हैं।
मायावती की बौखलाहट और अखिलेश यादव के PDA फॉर्मूले की विफलता ने यूपी की राजनीति में नए सवाल खड़े कर दिए हैं। दलित वोट बैंक के बिखराव और नए नेताओं के उभार ने बसपा के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। ऐसे में, 2027 के चुनाव में बसपा और सपा का भविष्य क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।
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ओवैसी का बयान
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में एक सभा को संबोधित करते हुए धार्मिक स्वतंत्रता की बात की। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद-25 हर नागरिक को धार्मिक आजादी का अधिकार देता है। उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि वह धर्म के बारे में किसी मुख्यमंत्री से नहीं, बल्कि धार्मिक विद्वानों से सीखेंगे। ओवैसी ने यह भी कहा कि मुसलमानों को मस्जिद जाने का अधिकार है और वे इस अधिकार का इस्तेमाल करेंगे।
हालांकि, ओवैसी के इस बयान के पीछे की राजनीतिक मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। क्या यह सिर्फ वोटबैंक को खुश करने की कोशिश है? क्या धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर मुस्लिम समुदाय को भड़काने का प्रयास किया जा रहा है?
संभल में होली: सुरक्षा के बीच खेला गया त्योहार
संभल में होली के मौके पर जो तस्वीरें सामने आईं, वे चौंकाने वाली थीं। होली खेलने वाले हिंदुओं के आसपास पुलिस बल की भारी तैनाती थी। सुरक्षा बलों ने हाथों में डंडे लिए हुए थे, ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके। यह दृश्य इस बात का प्रमाण है कि देश में धार्मिक त्योहारों को मनाने के लिए भी सुरक्षा के घेरे की जरूरत पड़ रही है।
क्या यही है धार्मिक स्वतंत्रता? क्या यही है भाईचारे की मिसाल? जब हिंदुओं को अपना त्योहार मनाने के लिए पुलिस बल की जरूरत पड़े, तो यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या हम वाकई में धार्मिक सद्भाव की बात कर सकते हैं?
धार्मिक स्वतंत्रता बनाम मौलिक कर्तव्य
संविधान का अनुच्छेद-25 हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। लेकिन क्या यह अधिकार दूसरों के अधिकारों को कुचलने का लाइसेंस है? ओवैसी ने धार्मिक स्वतंत्रता की बात की, लेकिन क्या उन्होंने मौलिक कर्तव्यों की बात की?
मौलिक कर्तव्यों में यह भी शामिल है कि हम दूसरों के धर्म और विश्वास का सम्मान करें। जब होली और जुम्मा एक ही दिन पड़ते हैं, तो हिंदुओं ने कभी नहीं कहा कि मुसलमान नमाज न पढ़ें। लेकिन क्या मुस्लिम समुदाय ने हिंदुओं को होली खेलने की आजादी दी? संभल की घटनाएं इस सवाल को और मजबूत करती हैं।
15 मिनट की धमकी: राजनीति का नया हथियार?
ओवैसी के एक वीडियो में उन्हें कहते हुए सुना जा सकता है, “अभी 15 मिनट बाकी हैं।” यह बयान उनके समर्थकों के बीच खूब वायरल हुआ। लेकिन क्या यह धमकी भरा बयान धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है? क्या यह देश में तनाव बढ़ाने का प्रयास है?
ओवैसी ने शुभेंदु अधिकारी के बयान का विरोध किया, लेकिन क्या उन्होंने अपने समर्थकों को 15 मिनट की धमकी देने पर कोई कार्रवाई की? यह सवाल उनकी राजनीतिक मंशा पर सवाल खड़ा करता है।
धार्मिक स्वतंत्रता या राजनीतिक फायदा?
धार्मिक स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, लेकिन यह दूसरों के अधिकारों को कुचलने का बहाना नहीं बन सकता। संभल की घटनाएं और ओवैसी के बयान इस बात को रेखांकित करते हैं कि धार्मिक मुद्दों को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
देश में सभी धर्मों के लोगों को अपने त्योहार मनाने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार मौलिक कर्तव्यों के साथ जुड़ा हुआ है। हमें दूसरों के धर्म और विश्वास का सम्मान करना चाहिए। केवल तभी हम एक सही मायने में धार्मिक सद्भाव और भाईचारे की बात कर सकते हैं।
योगी आदित्यनाथ का बयान
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक बयान देकर चर्चा बटोरी है। उन्होंने कहा कि वे अबू आजमी जैसे लोगों का इलाज कर सकते हैं, जो औरंगजेब को महान बताते हैं। योगी ने कहा कि अगर अबू आजमी उत्तर प्रदेश आएं, तो वे उनकी आंखों से औरंगजेब की महानता का “मोतियाबिंद” हटा देंगे। योगी ने यह भी कहा कि वे पहले भी कई बड़े लोगों को सही रास्ते पर लाए हैं और अबू आजमी को भी ले आएंगे।
फिल्मों में इतिहास का चित्रण
बॉलीवुड में लंबे समय से हिंदू धर्म और संस्कृति का मजाक उड़ाया जाता रहा है। कई फिल्मों में मुसलमानों को दयनीय और ईमानदार दिखाया गया, जबकि हिंदू समाज के लोगों को लालची, पाखंडी और अत्याचारी के रूप में चित्रित किया गया। मुगल शासकों, खासकर औरंगजेब की तारीफ करने वाली फिल्में बनाई गईं, लेकिन उनकी क्रूरता को कभी सही ढंग से नहीं दिखाया गया।
हाल ही में छत्रपति संभाजी महाराज के बलिदान पर आधारित फिल्म “छावा” ने इतिहास की सच्चाई को उजागर किया है। इस फिल्म में औरंगजेब की बर्बरता को दिखाया गया है, जिससे कई लोगों को असहजता हो रही है। अबू आजमी जैसे लोगों ने इस फिल्म को काल्पनिक बताया और औरंगजेब को महान शासक कहा।
औरंगजेब का सच
औरंगजेब का इतिहास उसकी क्रूरता से भरा पड़ा है। उसने अपने पिता को कैद किया, अपने भाइयों की हत्या की, और अपने बेटे को मारने की कोशिश की। उसने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया, हजारों मंदिर तोड़े, और हिंदू महिलाओं पर अत्याचार किए। उसका शासन हिंदुओं के लिए अंधकारमय था।
लेकिन आज भी कुछ लोग औरंगजेब को महान बताते हैं। यह सोच उनकी शिक्षा और इतिहास के गलत चित्रण का नतीजा है। आजादी के बाद से ही भारत में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है, जिससे औरंगजेब जैसे शासकों को महान बताया जाता रहा।
आज का विवाद
21वीं सदी में भी औरंगजेब की क्रूरता को सही ढंग से दिखाने पर कुछ लोगों को एतराज हो रहा है। यह सवाल उठता है कि आखिर क्यों आज भी औरंगजेब को महान बताया जाता है? क्या यह वैचारिक हस्तांतरण का नतीजा है, जो पीढ़ियों से चला आ रहा है?
औरंगजेब का इतिहास उसकी क्रूरता और अत्याचारों से भरा है। उसे महान बताना इतिहास के साथ अन्याय है। फिल्म “छावा” जैसे प्रयास इतिहास की सच्चाई को उजागर करने की दिशा में एक सराहनीय कदम हैं। यह जरूरी है कि हम इतिहास को सही ढंग से समझें और उसके आधार पर अपने समाज को आगे बढ़ाएं।
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क्यों बदल रहे हैं योगी के तेवर? मंदिरों पर भी सख़्ती!
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक बड़ा फैसला लेते हुए मंदिरों सहित सभी धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने का आदेश दिया है। यह फैसला उन्होंने आने वाले त्योहारों जैसे होली, शब-ए-बारात, रमजान, नवरोज़, चैत्र नवरात्र और राम नवमी को शांतिपूर्ण तरीके से मनाने के लिए लिया है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर कोई इस आदेश का पालन नहीं करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यह फैसला लेने के पीछे योगी की क्या सोच है? क्या यह उनके तेवर बदलने का संकेत है? आइए, इस पर विस्तार से बात करते हैं।
त्योहारों को लेकर योगी की चिंता
योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक की। इस बैठक में उन्होंने आने वाले त्योहारों को शांतिपूर्ण तरीके से मनाने के लिए कई निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि पिछले 8 सालों में उत्तर प्रदेश में सभी धर्मों के त्योहार शांति और सौहार्द के साथ मनाए गए हैं और इस परंपरा को आगे भी बनाए रखना जरूरी है। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि त्योहारों के दौरान कानून व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा जाए।
योगी ने यह भी कहा कि 14 मार्च को होली और शुक्रवार दोनों पड़ रहे हैं, इसलिए इस दिन विशेष सतर्कता बरतनी होगी। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि त्योहारों के दौरान किसी भी प्रकार की अराजकता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। साथ ही, उन्होंने संदिग्ध लोगों पर नजर रखने और धार्मिक स्थलों के बाहर भीख मांगने वालों को रोजगार देने के निर्देश भी दिए।
लाउडस्पीकर पर सख़्ती क्यों?
योगी आदित्यनाथ ने लाउडस्पीकर को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सिर्फ परिसर के अंदर तक ही सीमित होना चाहिए। अगर कहीं भी लाउडस्पीकर की आवाज परिसर से बाहर आती है, तो उसे तुरंत हटाया जाए। उन्होंने कहा कि अगर कोई इस नियम का पालन नहीं करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
योगी का यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले कुछ समय से धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर कई शिकायतें मिल रही थीं। कई बार लाउडस्पीकर की तेज आवाज से आसपास के लोगों को परेशानी होती है और यह सामाजिक तनाव का कारण भी बन सकता है। योगी ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए यह कदम उठाया है।
क्या बदल रहे हैं योगी के तेवर?
योगी आदित्यनाथ को हिंदुत्व का सिपाही माना जाता है। उनकी छवि एक सख़्त और निर्णय लेने वाले नेता की है। लेकिन, लाउडस्पीकर को लेकर उनका यह फैसला कुछ लोगों को हैरान कर सकता है। क्या यह उनके तेवर बदलने का संकेत है? असल में, योगी का यह फैसला किसी एक धर्म को टारगेट करके नहीं है, बल्कि यह सभी धर्मों के लिए समान रूप से लागू होगा। उनका मकसद सिर्फ यह सुनिश्चित करना है कि त्योहारों के दौरान शांति और सौहार्द बना रहे।
महाकुंभ और त्योहारों की तैयारी
योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ के आखिरी स्नान पर्व महाशिवरात्रि को लेकर भी कई निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु आएंगे, इसलिए ट्रैफिक और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाए। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि श्रद्धालुओं को संगम स्नान के लिए कम से कम पैदल चलना पड़े और उनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाए।
योगी आदित्यनाथ का लाउडस्पीकर को लेकर यह फैसला उनकी सख़्त छवि को और मजबूत करता है। उनका मकसद सिर्फ यह सुनिश्चित करना है कि त्योहारों के दौरान शांति और सौहार्द बना रहे। यह फैसला किसी एक धर्म को टारगेट करके नहीं है, बल्कि यह सभी धर्मों के लिए समान रूप से लागू होगा। योगी चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश में किसी भी प्रकार का उपद्रव न हो और लोग शांति से त्योहार मना सकें।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य के विकास के लिए एक बड़ा और महत्वाकांक्षी बजट पेश किया है। यह बजट 8 लाख 8 हज़ार 736 करोड़ रुपये का है, जो पिछले साल के मुकाबले करीब 3 लाख करोड़ रुपये ज्यादा है। इस बजट में यूपी की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने, रोजगार बढ़ाने और बुनियादी ढांचे को सुधारने पर खास ध्यान दिया गया है।
यूपी की आय में बंपर बढ़ोतरी
यूपी की अर्थव्यवस्था लगातार तेजी से बढ़ रही है। साल 2022-23 में राज्य का सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) 22.58 लाख करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 25.48 लाख करोड़ रुपये हो गया। यानी एक साल में 2 लाख 90 हज़ार करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है। सीएम योगी का लक्ष्य है कि मार्च 2025 तक यूपी की अर्थव्यवस्था को 32 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाया जाए।
युवाओं और छात्राओं के लिए बड़ी योजनाएं
योगी सरकार ने युवाओं और छात्राओं के लिए कई बड़ी योजनाएं शुरू की हैं। इनमें 92 हज़ार युवाओं को रोजगार देने का वादा किया गया है। साथ ही, युवाओं को रोजगार शुरू करने के लिए ब्याज मुक्त कर्ज देने की घोषणा की गई है। मेधावी छात्राओं को स्कूटी देने का भी ऐलान किया गया है, जिससे लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा।
बुनियादी ढांचे का विकास
यूपी में बुनियादी ढांचे के विकास पर भी खास ध्यान दिया जा रहा है। सरकार ने चार नए एक्सप्रेस वे बनाने की घोषणा की है। इसके अलावा, कई सड़कों और एक्सप्रेस वे के विस्तार को भी मंजूरी दी गई है। प्रदेश में 58 स्मार्ट सिटी बनाने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी।
धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा
यूपी में अयोध्या, काशी, मथुरा और वृंदावन जैसे धार्मिक स्थलों पर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी कई योजनाएं शुरू की गई हैं। बांके बिहारी कॉरिडोर के लिए 150 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। इसके अलावा, पर्यटन को बढ़ाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन और सड़कों के नेटवर्क को भी मजबूत किया जा रहा है।
कृषि और उद्योग पर फोकस
योगी सरकार ने कृषि और उद्योग के विकास पर भी जोर दिया है। किसानों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। साथ ही, उद्योग और आईटी सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए भी कदम उठाए गए हैं। इससे यूपी में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
यूपी का लक्ष्य: 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था
सीएम योगी आदित्यनाथ का लक्ष्य है कि यूपी की अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाया जाए। इसके लिए सरकार ने 10 प्रमुख क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यटन और ऊर्जा पर फोकस किया है। इन क्षेत्रों में सेक्टरवार योजनाएं बनाई गई हैं और उनकी नियमित समीक्षा भी की जा रही है।
कानून-व्यवस्था में सुधार
यूपी में कानून-व्यवस्था में भी बड़ा सुधार देखने को मिला है। अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई है, जिससे प्रदेश में सुरक्षा का माहौल बना है। इसका सीधा असर पर्यटन और व्यापार पर पड़ा है, जिससे यूपी की अर्थव्यवस्था को फायदा मिल रहा है।
योगी सरकार का यह बजट यूपी के विकास की नई राह दिखाता है। बुनियादी ढांचे, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में किए गए प्रावधानों से यूपी के लोगों को बेहतर जीवन मिलेगा। साथ ही, यूपी की अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य प्रदेश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश की कमान संभाल रहे हैं। यह साफ दर्शाता है कि भारत की जनता का उन पर और उनके नेतृत्व पर अटूट विश्वास बना हुआ है। लेकिन, एक बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर मोदी के बाद देश का नेतृत्व कौन संभालेगा? कौन होगा जो मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल सकता है? इस सवाल का जवाब जनता ने खुद दे दिया है।
जनता की पहली पसंद: अमित शाह
एक सर्वे के मुताबिक, जनता ने मोदी के बाद अमित शाह को प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार माना है। 26.8 प्रतिशत लोग अमित शाह को देश का अगला प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं। अमित शाह, जो वर्तमान में गृह मंत्री हैं, अपने मजबूत नेतृत्व और संगठनात्मक कौशल के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है।
दूसरे नंबर पर योगी आदित्यनाथ
अमित शाह के बाद दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। 25.3 प्रतिशत लोग योगी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में अपने कार्यकाल के दौरान सख्त प्रशासन और विकास कार्यों के लिए खास पहचान बनाई है। उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है, और वे जनता के बीच एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं।
अन्य उम्मीदवारों की स्थिति
- नितिन गडकरी: 14.6 प्रतिशत लोग नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त मानते हैं। गडकरी, जो सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री हैं, अपने कुशल प्रबंधन के लिए जाने जाते हैं।
- राजनाथ सिंह: 5.5 प्रतिशत लोग रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चाहते हैं।
- शिवराज सिंह चौहान: 3.2 प्रतिशत लोग मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस पद के लिए उपयुक्त मानते हैं।
योगी आदित्यनाथ: सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री
इसी सर्वे में यह भी पता चला कि योगी आदित्यनाथ को देश का सबसे बेहतरीन मुख्यमंत्री माना गया है। 35.5 प्रतिशत लोगों ने योगी को सबसे अच्छा मुख्यमंत्री चुना। इसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 10.6 प्रतिशत वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहीं।
अन्य मुख्यमंत्रियों की रैंकिंग
- एमके स्टालिन (तमिलनाडु): 5.2 प्रतिशत
- चंद्रबाबू नायडू (आंध्र प्रदेश): 5.1 प्रतिशत
- देवेंद्र फडणवीस (महाराष्ट्र): 4 प्रतिशत
- सिद्धारमैया (कर्नाटक): 3.5 प्रतिशत
- हिमंता बिस्वा सरमा (असम): 3.4 प्रतिशत
- नीतीश कुमार (बिहार): 3.4 प्रतिशत
- मोहन यादव (मध्य प्रदेश): 2.2 प्रतिशत
बीजेपी का दबदबा बरकरार
सर्वे के मुताबिक, अगर आज लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को 281 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिल सकता है। वहीं, कांग्रेस को केवल 78 सीटें ही मिल पाएंगी। अगर गठबंधन की बात करें तो एनडीए को 343 सीटें मिल सकती हैं, जबकि विपक्षी गठबंधन (इंडिया ब्लॉक) को 188 सीटें ही मिल पाएंगी।
मोदी: सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री
सर्वे में यह भी पता चला कि 50.7 प्रतिशत लोग नरेंद्र मोदी को भारत का सबसे बेहतरीन प्रधानमंत्री मानते हैं। इसके बाद इंदिरा गांधी को 10.3 प्रतिशत, मनमोहन सिंह को 13.6 प्रतिशत, और अटल बिहारी वाजपेयी को 11.8 प्रतिशत लोगों ने सबसे बेहतर प्रधानमंत्री माना।