अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ विवाद सुलझता नजर आ रहा है. दोनों देशों के बीच स्विटजरलैंड के जेनेवा में हुई बैठक में कई मुद्दों पर सहमति बन गई है. अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा कि दोनों देशों के बीच बातचीत सफल रही और उन्होंने बैठक की मेजबानी करने के लिए स्विट्जरलैंड का आभार भी व्यक्त किया. हालांकि इस बैठक में क्या हुआ, इसकी ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई है. आज यानी 12 मई को तस्वीर पूरी तरह स्पष्ट हो सकती है.
एक्सपर्ट्स ने चेताया था
अमेरिका और चीन टैरिफ गतिरोध में उलझे हुए हैं. यूएस प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर 145% का भारी-भरकम टैरिफ लगाया है, जिसके जवाब में चीन भी अमेरिका से आने वाले समान पर टैरिफ बढ़ा चुका है. इस गतिरोध का अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर भी असर पड़ा है. इसके चलते भारत सहित दुनियाभर के शेयर बाजार प्रभावित हुए. अब जब हालात सामान्य होते दिखाई दे रहे हैं, तो यह पूरी दुनिया के लिए अच्छे संकेत हैं. एक्सपर्ट्स पहले से ही कहते आ रहे हैं कि अगर दुनिया की इन दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबकुछ ठीक नहीं होता, तो दुनियाभर के बाजार प्रभावित होते रहेंगे.
यूएस-चीन दोनों को नुकसान
जनवरी में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन के खिलाफ भारी टैरिफ लगाए जाने के बाद दोनों देशों के बीच ट्रेड पर हुई यह पहली बैठक थी. अब तक जिस तरह के बयान सामने आए हैं, उससे यही संकेत मिलता है कि गतिरोध सुलझ गया है. दरअसल, चीन के खिलाफ भारी-भरकम टैरिफ का अमेरिका में भी विरोध हुआ है. इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को झटका भी लगा है. साल के पहले तीन महीनों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कोई तेजी देखने को नहीं मिली है. अमेरिका चीन के लिए बड़ा बाजार है और अमेरिकी चीनी सामान पर काफी हद तक निर्भर हैं. ऐसे में टैरिफ वॉर से दोनों को नुकसान हो रहा है.
भारत पर ऐसे होगा असर
भारत के लिहाज से देखें, तो यूएस-चीन ट्रेड वॉर का खत्म होना उसके लिए नुकसानदायक है. इस वॉर के चलते भारतीय कंपनियों को अमेरिकी बाजार पर बढ़त बनाने का मौका मिला था. कई चीनी कंपनियां भी भारतीय कंपनियों से संपर्क कर रही थीं और सस्ते में माल ऑफर कर रही थीं, ताकि टैरिफ से होने वाले घाटे को कम किया जा सके. कुछ वक्त पहले ET की एक रिपोर्ट में फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के महानिदेशक अजय सहाय के हवाले से बताया गया था कि चीनी कंपनियां भारतीय फर्म से संपर्क कर रही हैं. ताकि वे उनके अमेरिकी ग्राहकों को सामान की आपूर्ति कर सकें. बिक्री के बदले में भारतीय फर्म चीनी कंपनियों को कमीशन देंगी. सबसे ज्यादा हैंड टूल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और घरेलू उपकरणों जैसे क्षेत्रों से जुड़ी चीनी कंपनियों ने भारतीय फर्म से संपर्क किया था.
सीमित हो गई संभावना
इसके अलावा भी कई सेक्टर्स में भारत को फायदे की उम्मीद थी. चीन की तुलना में अमेरिकी टैरिफ भारत पर कम है. ऐसे में भारत अमेरिकी बाजार में चीन की हिस्सेदारी में से एक बड़ा हिस्सा अपने नाम कर सकता था. अब जब यूएस-चीन में हालात सामान्य हो रहे हैं, तो इसकी संभावना बेहद सीमित हो जाएगी. एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका-चीन के बीच सुलह से जहां ड्रैगन व्यापार में पुनः मजबूती प्रदान कर करने की स्थिति में आ जाएगा. वहीं, इससे भारत को मिल रहा रणनीतिक लाभ कम होने की आशंका रहेगी. चीन के वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल में अमेरिका को उसका निर्यात 20% से अधिक घट गया है.