बिहार की राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। इस बार सियासी केंद्र में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (PK) हैं। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर जिन्होंने अब तक पर्दे के पीछे रहकर अपनी चालें चली थीं, लेकिन अब पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर चुके हैं। उनकी अगुवाई में Jan Suraaj Party (JSP) ने एक बड़ा राजनीतिक विस्तार करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह और पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह को अपने पाले में कर लिया है। इस घटनाक्रम ने न केवल JSP को नई ताकत दी है, बल्कि सीधे तौर पर महागठबंधन, विशेषकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और तेजस्वी यादव के वोट बैंक पर सीधा प्रहार किया है।
पूर्व मंत्री आरसीपी सिंह, जिन्हें प्रशासन और संगठन का लंबा अनुभव है, और सीमांचल के प्रभावशाली नेता पप्पू सिंह, जो मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण वाले इलाकों में मजबूत पकड़ रखते हैं। इन दोनों को साथ लेकर पीके ने बहुस्तरीय राजनीतिक समीकरणों को साधने की कोशिश की है।
संगठन और प्रचार की नई रणनीति
अब तक संगठन निर्माण में लगे पीके को रोजमर्रा के प्रबंधन से राहत मिल गई है। आरसीपी सिंह और पप्पू सिंह JSP की संगठनात्मक मजबूती और क्षेत्रीय पकड़ को विस्तार देंगे, जबकि पीके राजनीतिक रणनीति, जनसभाओं और जन संवादों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
विशेषज्ञों के अनुसार यह केवल आंतरिक फेरबदल नहीं, बल्कि एक सधी हुई रणनीति है, जिसका निशाना सीधे तेजस्वी यादव हैं। नीतीश कुमार की “विकास पुरुष” छवि को चुनौती देने के लिए PK को ऐसे चेहरों की ज़रूरत थी जो खुद नीतीश के करीबी रह चुके हों। इस भूमिका में आरसीपी सिंह बिल्कुल फिट बैठते हैं।
सीमांचल में RJD के वोट बैंक पर सीधा असर
सीमांचल क्षेत्र, जहां राजद का MY वोट बैंक लंबे समय से प्रभावी रहा है, अब Jan Suraaj Party के नए अभियान का मुख्य निशाना बन गया है। पप्पू सिंह की सामाजिक और आर्थिक पकड़ इस क्षेत्र में जसुपा को नई जमीन देने की तैयारी में है।
18 मई को आरसीपी सिंह की पार्टी ‘आप सबकी आवाज’ का Jan Suraaj Party में औपचारिक विलय हो चुका है। उनके नेता और कार्यकर्ता अब JSP में समायोजित हो रहे हैं। पटना स्थित पप्पू सिंह का पारिवारिक आवास अब JSP का “कमांड सेंटर” बन चुका है, जहां से संगठन का संचालन हो रहा है।
तेजस्वी यादव के लिए चुनौती
तेजस्वी यादव अब तक भाजपा को अपना मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी मानते रहे हैं, लेकिन प्रशांत किशोर के मैदान में उतरने से समीकरण बदल गए हैं। न तो शोरगुल और न ही नारेबाज़ी, पीके अपने शांत लेकिन धारदार अंदाज़ में RJD के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
अब प्रशांत किशोर की सभाएं उन तबकों को भी आकर्षित करने लगी हैं जो बदलाव तो चाहते हैं, लेकिन राजद में विकल्प नहीं देखते। जसुपा का फोकस इन्हीं मतदाताओं पर है।
भविष्य की रणनीति
आने वाले दिनों में प्रशांत किशोर के दौरे और सभाएं और तेज़ होंगी। प्रत्याशी चयन में आरसीपी सिंह की पकड़ और सामाजिक समीकरणों की समझ मददगार होगी, जबकि अंतिम निर्णय प्रशांत किशोर के पास रहेगा। JSP के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पप्पू सिंह की भूमिका भी निर्णायक होगी, लेकिन जनता के बीच पार्टी का चेहरा सिर्फ प्रशांत किशोर रहेंगे।
बिहार की राजनीति में यह नया मोर्चा महागठबंधन के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गया है। प्रशांत किशोर का यह गेमप्लान न केवल मौजूदा समीकरणों को चुनौती दे रहा है, बल्कि एक नए सियासी विकल्प के रूप में खुद को स्थापित करने की ओर अग्रसर है।
अब यह देखना बाकी है कि तेजस्वी यादव इस चुनौती का जवाब किस तरह देते हैं, लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर की एंट्री ने हलचल मचा दी है।