‘कहानी ना-पाक मुल्क की’ के पहले भाग में आपने पढ़ा ‘1947 से 1967 का पाकिस्तान: नफरत की नींव पर बना मुल्क खुश कैसे रहता‘. अब पढ़िए इस कड़ी का दूसरा भाग.
पार्ट-2 मोहम्मद अली जिन्ना ही वह शख्स थे, जिन्होंने धर्म के नाम पर भारत को बांटने का गंदा खेल खेला. जिन्ना मुसलमानों के लिए एक अलग मुल्क चाहते थे. हालांकि, इस चाहत में मुस्लिमों का हित नहीं बल्कि उनकी अपनी महत्वकांक्षा छिपी थी. मोहम्मद अली जिन्ना शुरुआत से महंगी लाइफस्टाइल के शौकीन थे और हुकूमत उन्हें सुहाती थी. लेकिन वह अच्छे से जानते थे कि आजाद भारत में वह देश के सर्वोच्च पद पर नहीं पहुंच सकते, इसलिए उन्होंने धर्म के नाम पर भारत को बांटने की जिद पकड़ ली. इस एक जिद ने भारत को कई गहरे ज़ख्म दिए. हर तरफ अशांति, दंगे लेकिन जिन्ना को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. वह केवल एक अलग मुल्क चाहते थे, जहां केवल उनकी हुकूमत चले.
टीबी के चलते हुई मौत
आखिरकार उनकी जिद पूरी हुई और अंग्रेजों की कैद से निकला भारत बंटवारे के दर्द में डूब गया. पाकिस्तान अस्तित्व में आया और जिन्ना उसके सरदार बन गए. लेकिन कहते हैं कि दुःख-दर्द देने वाला ज्यादा दिनों तक चैन से नहीं रह सकता. जिन्ना के साथ भी यही हुआ. वह पाकिस्तान के सरदार होने का सुख ज्यादा समय तक नहीं भोग सके. टीबी के चलते उनकी मौत हो गई. भारत के बंटवारे के बाद जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने और लियाकत अली खान को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. इसके करीब एक साल बाद ही जिन्ना दुनिया से रुखसत हो गए.
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जिन्ना ने की थीं 2 शादियां
पाकिस्तान के फाउंडर जिन्ना ने दो शादियां कीं थी और उनकी एक बेटी थी. वह अपनी दूसरी पत्नी रत्तनबाई (रूटी) और बेटी दीना के बेहद करीब थे. हालांकि, इन दोनों से जिन्ना के रिश्ते में कई उतार चढ़ाव भी आए. एक रिपोर्ट के अनुसार, पारसी महिला रूटी यानी रत्तनबाई ने 1918 में अपने पिता की मर्जी के खिलाफ जिन्ना से शादी की थी, उस समय उनकी उम्र 18 साल और जिन्ना की 42 साल थी. जिन्ना पहले भी एक बार शादी कर चुके थे. शादी के कुछ साल बाद रतनबाई और जिन्ना अलग भी हो गए थे, लेकिन जब रूटी बीमार पड़ीं, तो दोनों फिर एक साथ आए. 1929 में महज 29 साल की उम्र में रूटी की मौत हो गई. उस समय उनकी एक छोटी बच्ची थी -दीना.
आखिरी वक्त में बेटी से अलग
एक किताब में दावा किया गया है कि दीना ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर एक ईसाई युवक से शादी की थी. विभाजन के समय जिन्ना ने बेटी दीना को भारत छोड़कर पाकिस्तान आने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया. दीना ने अपने पति और बच्चों के साथ मुंबई में रहने का फैसला किया. जिन्ना बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए और एक साल के अंदर ही उनकी मौत हो गई. जिन्ना की मौत के वक्त भी दीना वहां मौजूद नहीं थीं. इस तरह, भारत को धर्म के नाम पर बांटने वाले जिन्ना को आखिरी समय तक सुकून और चैन नहीं मिला.

दंगों के बीच भी सिगार की चिंता
अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई के समय भी जिन्ना का रुबाब और रुतबा कायम रहा. महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस जैसे लीडर जहां सादगी के साथ आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाते रहे. वहीं, जिन्ना ने लग्जरी लाइफस्टाइल का मोह नहीं छोड़ा. यहां तक कि विभाजन की मांग को लेकर जब संयुक्त भारत में दंगे हो रहे थे, जिन्ना को अपने महंगे सिगार की फिक्र थी. बताया जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना ने उस समय देहरादून के एक शख्स को चिट्ठी लिखकर पूछा था कि उनके सिगार के डिब्बे कहां हैं? जिन्ना क्यूबन सिगार के शौकीन थे, जिसकी कीमत काफी ज्यादा हुआ करती थी.
तंगहाल मुल्क का रईस शासक
पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बनने के बाद जिन्ना की लाइफ और भी ज्यादा लग्जरी हो गई. अब उनके पास अपना पूरा मुल्क था और उसकी चाबी उनके हाथों में थी. जन्म के समय पाकिस्तान आर्थिक लिहाज से भी काफी कमजोर था. इसके बावजूद मोहम्मद अली जिन्ना की महंगी लाइफस्टाइल में कोई बदलाव नहीं आया. महंगी सिगरेट, शराब और सिगार का शौक उनकी आखिरी सांस तक कायम रहा. जिन्ना एक नामी वकील थे और उनके पिता बिजनेसमैन. उनके पिता का व्यावसाय भारत से लेकर ब्रिटेन तक फैला था. इंग्लैंड से 1896 से लौटने के बाद जिन्ना मुंबई में पहले मुस्लिम बैरिस्टर बने थे. इस देश ने उन्हें बहुत कुछ दिया, लेकिन एक ही झटके में वह सबकुछ भूल गए और अपने फायदे के लिए भारत का विभाजन कर डाला.
वार्डरोब में करीब 200 सिले हुए सूट
जिन्ना ने आजाद भारत, विदेश और फिर पाकिस्तान में महंगे घर खरीदे और बनवाये. उनका एक घर इंग्लैंड में हैंपस्टेड में था, जो लंदन का सबसे पॉश एरिया था. मुंबई के मालाबार हिल्स और दिल्ली में औरंगजेब रोड पर भी उनका आलीशान बंगला था. पाकिस्तान जाकर भी उन्होंने शानदार घर खरीदे. जिन्ना महंगी क्रेवन सिगरेट भी पीते थे. इसी तरह वो महंगी और बेशकीमती शराब के भी शौकीन थे. आजादी की लड़ाई के दौरान भी जिन्ना सूट-बूट और टाई में ही जनसभा को संबोधित करते थे. बताया जाता है कि उनकी सिल्क की टाई कभी रिपीट नहीं होती थी और उनके वार्डरोब में करीब 200 सिले हुए सूट होते थे. भारत को तोड़ने वाले जिन्ना का आखिरी समय अच्छा नहीं गुजरा. या यूं कहें कि भारत और उसकी देशभक्त जनता की बद्दुआ लेकर वह ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहे.

इसलिए छिपाई बीमारी
पाकिस्तान के संस्थापक टीबी से पीड़ित थे, लेकिन इस बात को छिपाते रहे. उन्हें लगता था कि बीमारी की खबर बाहर आते ही कहीं भारत विभाजन का उनका ख्वाब अधूरा न रह जाए. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिन्ना ने एक बार कहा था कि हां, मुझे 12 साल से टीबी की जानकारी है. मैंने अपनी बीमारी को कभी इसलिए जाहिर नहीं किया ताकि हिंदू मेरी मौत का इंतजार न करें. 14 जुलाई 1948, टीबी से जूझ रहे जिन्ना को क्वेटा से जियारत ले जाया गया और 11 सितंबर 1948 को उनका इंतकाल हो गया. जिन्ना की बहन ने किताब ‘माय ब्रदर’ में उनके आखिरी दिनों का जिक्र किया है.

जब खत्म हुआ एम्बुलेंस का पेट्रोल
जिन्ना डॉक्टर को दिखाने से बचते थे, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि उनकी बीमारी की खबर सामने आए. हालांकि, 23 जुलाई, 1948 को लाहौर के जाने-माने डॉ. कर्नल इलाही बख्श ने उनका चेकअप किया और बाद में टीबी की पुष्टि हुई. 10 सितंबर 1948 को डॉ. बख्श ने फातिमा को बताया कि जिन्ना के बचने की अब कोई उम्मीद नहीं है. बताया जाता है कि 11 सितंबर 1948 को जब जिन्ना की तबीयत बिगाड़ने लगी, तो उन्हें क्वेटा से कराची ले जाने के लिए विमान मंगाया गया. एयरपोर्ट से अस्पताल ले जाने के लिए जो एंबुलेंस बुलाई गई, उसका 4 मील की दूरी तय करने के बाद पेट्रोल खत्म हो गया. किसी तरह, उन्हें जनरल हाउस ले जाया गया, 4 घंटे बाद उनकी मौत हो गई.