
Sheikh Hasina Trial Starts In Bangladesh ICT: भारत (India) में रह रही बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) के खिलाफ बड़ा मुकदमा दर्ज हुआ है। बांग्लादेश की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्राइब्यूनल (ICT) ने उनके खिलाफ मानवता के खिलाफ अपराध के गंभीर आरोप लगाए हैं। बांग्लादेशी मीडिया में छपी रिपोर्ट्स के मुताबिक हसीना पर आरोप है कि उन्होंने पिछले साल देशभर में हुए विद्रोह के दौरान नरसंहार का आदेश दिया था। इन आरोपों को मुख्य अभियोजक मोहम्मद ताजुल इस्लाम और उनकी टीम ने अदालत में पेश किया।
Sheikh Hasina के खिलाफ साजिश!
बांग्लादेश (Bangladesh) की पूर्व PM शेख हसीना के खिलाफ बांग्लादेश की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल में मानवता के खिलाफ अपराधों का जो दिखावटी ट्रायल (Trial) शुरू हुआ है, वह न केवल बांग्लादेश की न्याय व्यवस्था पर एक काला धब्बा है, बल्कि यह पूरी तरह से एक राजनीतिक षड्यंत्र है, जिसकी जड़ें नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस (Muhammad Yunus) की सत्ता की भूख में गहराई से धंसी हुई हैं। रविवार को ICT में चीफ प्रॉसिक्यूटर ताजुल इस्लाम द्वारा दर्ज किए गए आरोप, जिनमें कहा गया कि जुलाई 2024 में हुए विरोध प्रदर्शनों में 1500 से अधिक लोग मारे गए और 25,000 से ज्यादा घायल हुए, असल में हसीना सरकार को बदनाम करने के लिए तैयार की गई एक Pre Planned स्क्रिप्ट का हिस्सा हैं। यह वही यूनुस हैं जिन्हें शेख हसीना ने सरकारी कर्ज योजनाओं में भ्रष्टाचार के कारण घोटालेबाज कहा था और जिन्हें बांग्लादेश की जनता ने कभी वोट नहीं दिया, लेकिन वो पर्दे के पीछे से सत्ता का नियंत्रण हासिल करने की कोशिशों में लगे रहे। हसीना के खिलाफ ट्रिब्यूनल की जांच एजेंसी ने 12 मई को जो रिपोर्ट सौंपी थी, वह एकतरफा, साजिशनुमा और गहरी राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित थी। हैरान करने वाली बात है की इस रिपोर्ट में जमात-उद-दावा जैसे प्रतिबंधित आतंकी संगठन के बयानों को सबूत के तौर पर पेश किया गया, जिसके सदस्यों सैफुल्लाह कसूरी और मुजम्मिल हाशमी ने खुलेआम लाहौर में भाषण देकर दावा किया कि उन्होंने बांग्लादेश में सरकार विरोधी आंदोलन में हिस्सा लिया और शेख हसीना को सत्ता से हटाने में भूमिका निभाई। क्या एक लोकतांत्रिक राष्ट्र की न्याय प्रणाली इन आतंकियों के बयानों पर भरोसा कर सकती है? क्या यही है बांग्लादेश की न्यायिक सच्चाई? यह एक सोची-समझी साजिश थी, जिसमें यूनुस की भूमिका स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
Muhammad Yunus ने पैदा की बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता!
कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें जैसे कि 2024 में Published Democracy Under Siege in Bangladesh और The Rise of Judicial Authoritarianism ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि कैसे बांग्लादेश में न्यायिक प्रक्रियाएं राजनीतिक दबाव में काम कर रही हैं, और हसीना को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। यूनुस, जिनकी Micro Financing योजनाएं गरीबों को कर्ज के जाल में फंसाने के लिए कुख्यात हो चुकी हैं, वही व्यक्ति हैं जिन्होंने विदेशों से फंडिंग लेकर देश के भीतर राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा देने की कोशिश की। यूनुस पर खुद बांग्लादेश की कई संस्थाओं ने करोड़ों टका के भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। Grameen Telecom में Labor exploitation, अवैध ट्रस्ट फंड ट्रांसफर और विदेशी फंड के गलत इस्तेमाल की जांच रिपोर्टें सार्वजनिक हो चुकी हैं। लेकिन इन सबके बावजूद, उन्हें अंतरराष्ट्रीय लॉबी ने शांति पुरुष का मुखौटा पहना कर हसीना के खिलाफ खड़ा किया। जुलाई 2024 में जो विरोध प्रदर्शन हुए, वो किसी लोकतांत्रिक Dissatisfaction का रिजल्ट नहीं थे, बल्कि ये यूनुस और उनके अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों की एक Sponsored Conspiracy थी, जिसमें आतंकी संगठन, विदेशी मीडिया, और राजनीतिक विरोधी सब मिलकर एक ही लक्ष्य को साधने में लगे थे, हसीना को गिराना और जब अगस्त में तख्तापलट हुआ, तो उसी यूनुस के लोग सत्ता में काबिज हो गए, जिन्होंने आते ही शेख हसीना पर हत्या, अपहरण और देशद्रोह के 225 झूठे मामले दर्ज किए। जिनका कोई कानूनी आधार नहीं था।
शेख हसीना के खिलाफ क्या फैसला सुना सकती है ICT?
यूनुस सरकार द्वारा हसीना का पासपोर्ट रद्द करना, ICT द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी करना, इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस की मांग इन सब से हताशा की बू आती है, एक ऐसे शासन की जो सच्चाई से डरा हुआ है. भारत सरकार का हसीना का वीज़ा बढ़ाना इस बात का प्रमाण है कि भारत को इस ट्रायल की असलियत का अंदाज़ा है। क्योंकि भारत जानता है कि 26/11 के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के लोगों से समर्थन पा कर यूनुस सरकार आतंक और अफवाहों के बल पर सत्ता में आई है। ट्रिब्यूनल ने हसीना को 12 फरवरी तक पेश होने का आदेश दिया था, लेकिन यह निर्देश एक दिखावटी कानून का तमाशा था, जिसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी गंभीरता से नहीं लिया गया।
हसीना अब भारत में शरणानार्थी की तरह जीवन जी रही हैं, लेकिन उनका राजनीतिक संघर्ष एक प्रतीक बन चुका है। जनता की चुनी हुई सरकार को गिराकर, लोकतंत्र की हत्या करने वालों के खिलाफ एक आंधी। यह ट्रायल हसीना के खिलाफ नहीं, सच्चाई के खिलाफ है। और सच वह आग है जो चाहे जितना दबा लो, एक दिन फूट पड़ेगी। शेख हसीना निर्दोष नहीं होती तो भारत उनने कभी शरण नहीं देता।