Home Politics Tejashwi Yadav vs Nitish Kumar: सोशल मीडिया जंग से गरमाई Bihar की सियासत, जंगल राज पर नई बहस
A symbolic depiction of Bihar’s political landscape. The scene shows a car representing the “double engine government” of Bihar, driven by Nitish Kumar with Narendra Modi sitting beside him. Around the car are visual representations of key issues facing Bihar: broken roads symbolizing infrastructure challenges, graduation caps representing education, protest signs highlighting unemployment, and silhouettes of people migrating with their bags, depicting the migration crisis. The overall tone should be colorful yet satirical, capturing the ongoing political debates and public concerns in Bihar.

Tejashwi Yadav vs Nitish Kumar: सोशल मीडिया जंग से गरमाई Bihar की सियासत, जंगल राज पर नई बहस

By ION Bharat Desk

पटना:- बिहार की राजनीति में इन दिनों सोशल मीडिया एक नए मोर्चे के रूप में उभर रहा है, जहां नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव प्रतिदिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर तीखे हमले कर रहे हैं। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लगातार पोस्टर और बयानों के जरिए तेजस्वी ‘डबल इंजन’ सरकार को विफल, जनविरोधी और पुराने ढर्रे पर चलने वाली बता रहे हैं।उनके पोस्ट व्यंग्यात्मक भाषा और तीखे शब्दों से भरे होते हैं, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल मची हुई है। पर सवाल यह है कि क्या तेजस्वी यादव केवल वर्तमान सरकार की आलोचना कर अपनी राजनीतिक ज़िम्मेदारी पूरी कर सकते हैं?

इतिहास की परछाई में वर्तमान की राजनीति

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि तेजस्वी यादव की आलोचना तब ज्यादा विश्वसनीय होती, अगर वे अपने परिवार के 15 साल के शासनकाल जिसे आमतौर पर “जंगल राज” के नाम से जाना जाता है, को लेकर भी आत्ममंथन करते।


Lalu Yadav waving to supporters during a political rally

1990 से 2005 के बीच बिहार ने अपहरण, अराजकता और प्रशासनिक विफलताओं का वो दौर देखा, जब आम लोग डर के साए में जीते थे। व्यापार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं चरमरा गई थीं। शाम होते ही सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था, और पटना समेत कई जिलों में दहशत का माहौल कायम रहता था।

नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद राज्य में क़ानून व्यवस्था में सुधार देखा गया। सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में प्रगति हुई और बिहार की छवि में सकारात्मक बदलाव आया।

उपमुख्यमंत्री रहते क्या बदला?

तेजस्वी यादव जब नीतीश सरकार की विफलताओं की गिनती करते हैं, तो यह भी पूछा जा रहा है कि उपमुख्यमंत्री रहते उन्होंने खुद क्या ठोस बदलाव लाए? उनके कार्यकाल में कई योजनाओं की घोषणा जरूर हुई, लेकिन धरातल पर उनका असर सीमित रहा।

बेरोजगारी, पलायन और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उस समय भी बने रहे। ऐसे में केवल विपक्ष में रहकर पोस्टर वार करना और सरकार को कोसना, एक राजनीतिक रणनीति से अधिक लोकप्रियता की होड़ जैसा प्रतीत होता है।

जनता क्या चाहती है?

आज की जागरूक जनता को नारों और सोशल मीडिया अभियानों से अधिक ज़मीनी बदलाव चाहिए। आलोचना तभी असरदार होती है जब वह केवल विरोध नहीं, समाधान और आत्मचिंतन के साथ आए। राजनीतिक टिप्पणीकारों का मानना है कि अगर तेजस्वी यादव बिहार के भविष्य को लेकर वाकई गंभीर हैं, तो उन्हें अपने परिवार के अतीत को स्वीकारना होगा और एक सकारात्मक, दूरदर्शी रोडमैप पेश करना होगा।

निष्कर्ष

बिहार एक बार उस जंगल राज का दंश झेल चुका है और अब वह उसी रास्ते पर दोबारा जाने को तैयार नहीं दिखता। विपक्ष में बैठकर केवल सत्ता पक्ष पर हमला करने से विश्वसनीयता नहीं बनती, बल्कि जनता ठोस कार्य और वैकल्पिक दृष्टिकोण की अपेक्षा करती है। राजनीति में आलोचना ज़रूरी है, लेकिन वह तभी सार्थक होती है जब वह ईमानदार आत्मविश्लेषण के साथ हो।

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