सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ संशोधन अधिनियम पर सुनवाई के दूसरे दिन केंद्र सरकार ने एक स्पष्ट और निर्णायक रुख अपनाया। इस सुनवाई में भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में सख़्त शब्दों में अपना पक्ष रखा, जिसमें उन्होंने वक़्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने यह साफ कहा कि वक़्फ नाम पर अब देश की भूमि हड़पने का सिलसिला बंद होना चाहिए। उनका यह बयान केवल एक क़ानूनी दलील नहीं था, बल्कि उन संस्थाओं और ताक़तों को एक सीधा संदेश था जो दशकों से वक़्फ के नाम पर सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों पर अवैध क़ब्ज़े का प्रयास कर रही हैं।
तुषार मेहता ने अदालत में स्पष्ट किया कि वक़्फ इस्लाम का एक धार्मिक सिद्धांत हो सकता है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। इसका मतलब यह है कि किसी भी स्थिति में इसे धर्म की आड़ में बचाव योग्य नहीं माना जा सकता। उनका यह बयान सरकारी संपत्तियों पर क़ब्ज़े के लिए वक़्फ बोर्ड द्वारा किए जा रहे दुरुपयोग को उजागर करता है, जिनमें कई बार बिना स्थानीय प्रशासन या आम जनता की जानकारी के लाखों एकड़ भूमि को चुपचाप वक़्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया।
केंद्र सरकार का सख़्त रुख और तुषार मेहता का बयान
तुषार मेहता ने यह भी बताया कि वक़्फ अधिनियम और इसके संशोधनों का दुरुपयोग किस प्रकार सार्वजनिक संपत्तियों पर क़ब्ज़े के लिए किया गया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह संशोधन किसी भी जल्दबाजी में नहीं, बल्कि व्यापक विचार-विमर्श और 96 लाख सुझावों के आधार पर लाया गया है, जिसके परिणामस्वरूप संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया था। इस प्रक्रिया में 36 बैठकें हुईं, और इसके बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि वक़्फ क़ानून में बदलाव की आवश्यकता है।
सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि वक़्फ बोर्ड की कई कार्रवाइयां न केवल क़ानूनी दृष्टिकोण से गलत थीं, बल्कि वे संविधान के बुनियादी ढांचे को भी चुनौती देती थीं। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि कैसे वक़्फ बोर्ड ने पुरातत्व विभाग की आपत्तियों के बावजूद कई संरक्षित स्मारकों को वक़्फ संपत्ति घोषित करने की कोशिश की और कुछ स्थानों पर अवैध निर्माण भी कराया, जिससे भारत की सांस्कृतिक धरोहर को खतरा हुआ।
वक़्फ क़ानून में बदलाव और सरकारी क़दम
तुषार मेहता ने अदालत में यह भी कहा कि वक़्फ क़ानून में अब यह प्रावधान किया गया है कि किसी संपत्ति को वक़्फ घोषित करने से पहले उसकी पूरी जांच जरूरी होगी और केवल कमिश्नर की रिपोर्ट के आधार पर ही संपत्ति का नाम वक़्फ रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा, लेकिन इसका मालिकाना हक़ नहीं बदला जाएगा। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, ताकि वक्फ बोर्ड बिना ठोस दस्तावेजों के किसी संपत्ति पर दावा न कर सके।
उन्होंने बताया कि वक्फ संपत्ति का पंजीकरण पहले से अनिवार्य था, लेकिन वक्फ बोर्ड ने बार-बार इस प्रक्रिया का दुरुपयोग किया, जहां ऐतिहासिक दस्तावेजों की बजाय केवल विवरण देना ही पर्याप्त था। सबसे गंभीर आरोप यह था कि वक्फ बोर्ड ने उन संपत्तियों पर भी दावा किया, जो सदियों से सार्वजनिक उपयोग के लिए रखी गई थीं, जैसे कि हिंदू मंदिरों, स्कूलों, पार्कों, अस्पतालों और यहां तक कि रेलवे की भूमि।
संविधान से ऊपर कोई नहीं
तुषार मेहता ने यह जोर देकर कहा कि भारत में कोई भी संस्था, चाहे वह किसी भी धर्म से जुड़ी हो, संविधान से ऊपर नहीं हो सकती। उन्होंने कहा, “अगर कोई धार्मिक संस्था अपने कामकाज में संविधान और कानून का उल्लंघन करती है और सरकारी या सार्वजनिक जमीनों पर कब्जा करने की कोशिश करती है, तो सरकार का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे कदम उठाए, जो संविधान और कानून के मुताबिक़ हों।”
तुषार मेहता ने यह भी कहा कि वक़्फ बोर्ड का काम धार्मिक अनुष्ठानों से संबंधित नहीं है, बल्कि यह केवल संपत्ति प्रबंधन और अकाउंटिंग का कार्य करता है, इसलिए इसकी तुलना हिंदू मंदिरों के ट्रस्टों से नहीं की जा सकती। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वक़्फ इस्लाम का एक धार्मिक सिद्धांत हो सकता है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और केवल एक प्रकार की धर्मार्थ संस्था है, जिसे संविधान और क़ानून के दायरे में रहकर काम करना चाहिए।
समाप्ति और भविष्य का दृष्टिकोण
तुषार मेहता ने अंत में यह कहा कि वक़्फ संशोधन अधिनियम किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह उन संस्थाओं के ख़िलाफ़ है जो संविधान की भावना के विरुद्ध कार्य करते हुए ख़ुद को क़ानून से ऊपर मानने की कोशिश करती हैं। आज देश के विभिन्न हिस्सों में लाखों एकड़ जमीन पर वक़्फ बोर्ड के दावे चल रहे हैं, जिनमें से अधिकांश पर क़ानूनी विवाद हैं। ऐसे में यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह आम जनता की, धर्मनिरपेक्षता की और न्याय की रक्षा करे, और यही इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य है।