पाकिस्तान के साथ युद्धविराम को क्यों तैयार हुआ भारत? पढ़िए सीजफायर के पीछे की असली कहानी

भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की आशंका अब समाप्त हो गई है. दोनों देशों ने युद्धविराम पर सहमति जताई है. अमेरिका का दावा है कि उसकी पहल पर भारत और पाकिस्तान युद्धविराम पर सहमत हुए हैं. हालांकि, भारत का कहना है कि सीजफायर में किसी ने मध्यस्थता नहीं की है. इसके साथ ही भारत पाकिस्तान की हर हरकत पर बारीकी से नजर रखेगा और अगर पड़ोसी कोई नापाक हरकत करता है, तो मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा.

किस, किसने निभाई भूमिका?
यह भी बताया जा रहा है कि अमेरिका के साथ-साथ ब्रिटेन और सऊदी अरब ने भी युद्धविराम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पाकिस्तान ने अमेरिका से सीजफायर का अनुरोध किया था. रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान को डर था कि भारत उसे बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए उसने अमेरिका से मध्यस्थता करने और युद्धविराम का अनुरोध किया. पाकिस्तान और भारत दोनों परमाणु संपन्न हैं. ऐसे में वैश्विक समुदाय को यह आशंका भी थी कि हालात बिगड़ने पर पूरी दुनिया संकट में आ सकती है.

भारत खुद नहीं चाहता युद्ध
भारत निश्चित तौर पर पाकिस्तान से कहीं गुना ज्यादा शक्तिशाली है. भारतीय सेना पहले भी पाकिस्तान को सबक सिखा चुकी है. लेकिन इसके बावजूद भारत खुद शायद युद्ध में उलझना नहीं चाहता. इसलिए उसने पाक स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने के बाद युद्धविराम पर सहमति जाता दी. दरअसल, युद्ध की स्थिति में भारत को अंदरूनी स्तर पर तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ सकता था, जिससे स्थिति और भी ज्यादा खराब हो जाती. चलिए इसे विस्तार से समझते हैं.

पड़ोसी बड़ी परेशानी
भौगोलिक तौर पर भारत कई ऐसे पड़ोसियों से घिरा हुआ है, जो हर पल उसकी परेशानियों में इजाफे को तत्पर रहते हैं. उदाहरण के तौर पर म्यामांर, बांग्लादेश, चीन और पाकिस्तान. म्यामांर और बांग्लादेश भी चीन की तरह पाकिस्तान का समर्थन करते हैं. भारत और म्यांमार के बीच लगभग 1643 किलोमीटर लंबी भूमि सीमा है. इस सीमा से अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम जैसे पूर्वोत्तर राज्य लगते हैं. पूर्वोत्तर क्षेत्र लंबे समय से समस्याग्रस्त रहा है. वहीं, भारत-बांग्लादेश के बीच 4,096.7 किलोमीटर लंबी सीमा है. हमारे पांच राज्य – असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और पश्चिम बंगाल इससे सटे हुए हैं. यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी जमीनी सीमा है. इसी तरह, भारत और चीन की सीमा 3488 किलोमीटर लंबी है और यह लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है.

पैदा हो सकता था अंदरूनी खतरा
यदि भारत पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझता, तो उसके पक्षकार ये तीनों देश भारत के लिए अंदरूनी खतरा पैदा कर सकते थे. अतर्राष्ट्रीय बिरादरी में भारत के रुतबे और अपने संभावित नुकसान को ध्यान में रखते हुए चीन, म्यामांर और बांग्लादेश शायद सीधे तौर पर पाकिस्तान का साथ नहीं देते. लेकिन उनके अप्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तान की मदद के लिए भारत की मुश्किलें बढ़ाने की आशंका हमेशा बनी रहती. 1993 में जब भारत ने म्यामांर की लीडर आंग सान सू की को नेहरू सम्मान से नवाज़ा था, तो म्यामांर की सरकार ने हमारे पूर्वोत्तर में टेंशन बढ़ाने वाले काम किए थे. इसी तरह, 2001 में भारत के इस आरोप के जवाब में कि अल कायदा से जुड़े परमाणु वैज्ञानिक म्यांमार में छुपे हैं, वहां की सरकार ने तकरीबन 200 आतंकियों को मुक्त कर दिया था.

इस बात की रहती आशंका
बांग्लादेश को भले ही भारत अस्तित्व में लेकर आया, लेकिन उसका पाकिस्तान के प्रति झुकाव किसी से छिपा नहीं है. इस वजह से बांग्लादेश से लगती सीमा बेहद संवेदनशील है. अगर यहां सिक्योरिटी ढीली पड़ती है तो घुसपैठ, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, हथियारों और ड्रग्स की स्मगलिंग के साथ-साथ आतंकवाद का खतरा भी बढ़ जाता है. चीन से हमारा सदियों पुराना सीमा विवाद है और वो भारत की परेशानी बढ़ाने वाले मौके की तलाश में रहता है. अगर भारत पाकिस्तान से युद्ध करता, तो ये देश अंदरूनी तौर पर उसकी मुश्किलें बढ़ाने वाले कदम उठा सकते थे. बांग्लादेश से घुसपैठ बढ़ सकती थी, म्यामांर पूर्वोत्तर में तनाव बढ़ा सकता था और चीन इस काम में इन दोनों की मदद करके भारत विरोधी साजिशों को अंजाम दे सकता था.

ऐसी स्थिति में एक तरफ देश पाकिस्तान से युद्ध का सामना कर रहा होता और दूसरी तरफ आंतरिक संकट से भी उसे निपटना होता. यह भी भारत सरकार द्वारा युद्ध विराम पर सहमति जताने की एक बड़ी वजह हो सकती है.

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