Home National News 1947 से 1967 का पाकिस्तान: नफरत की नींव पर बना मुल्क खुश कैसे रहता

1947 से 1967 का पाकिस्तान: नफरत की नींव पर बना मुल्क खुश कैसे रहता

By ION

दीमक, बड़े से बड़े विशाल वृक्ष को भी खोखला कर सकती है. यही दीमक यदि सिस्टम में लग जाए, तो देश का बर्बाद होना निश्चित है. हमारा पड़ोसी पाकिस्तान भी दीमक लगे वृक्ष के समान है, जो भले ही परमाणु हथियारों की धमकी देकर खुद को ताकतवर दिखाने की कोशिश करता है, लेकिन अंदर ही अंदर पूरी तरह सड़ चुका है. सेना और राजनेता पूरे मुल्क को दीमक की तरह खोखला कर चुके हैं और खोखले पेड़ अधिक दिनों तक टिके नहीं रह सकते. पाकिस्तान की बर्बादी की कहानी उसके जन्म के साथ ही लिखनी शुरू हो गई थी. हम 20-20 साल के चार खंडों में आपको बर्बाद और बेहाल पाकिस्तान का हाल बताएंगे. 4 खंड भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध पर अलग से होंगे, इस तरह कुल 8 खडों में आप जानेंगे कि धर्म के नाम पर भारत से टूटकर अस्तित्व में आया पाकिस्तान कैसे खुद अपनी कब्र खोदता रहा.

पार्ट-1: भारत को 15 अगस्त 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिली. देश को सालों की तपस्या और बलिदान के बाद मिली आजादी के साथ बंटवारे का दर्द भी मिला. 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि को देश का बंटवारा हो गया. मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान का जन्म हुआ. जिन्ना मुल्क के गवर्नर जनरल बने और लियाकत अली खान को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. इसके करीब एक साल बाद जिन्ना का निधन हो गया, वह टीबी से पीड़ित थे.

पाक को पहला बड़ा झटका
हिंसा और नफरत की नींव पर बने पाकिस्तान के लिए जिन्ना की मौत बड़ा झटका थी, क्योंकि इसके बाद से मुल्क में कभी न थमने वाले अस्थिरता के दौर शुरू की शुरुआत हुई. 1947-1948 में ही भारत और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध हुआ. इस युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह शिकस्त का सामना करना पड़ा. इसके बाद से वह लगातार भारत को अस्थिर और कमजोर करने की कोशिश करता रहा, लेकिन कभी कामयाब नहीं हुआ. बुरी सोच और फितरत अच्छाई और सच्चाई को परेशान ज़रूर कर सकती है, पराजित नहीं. बीच-बीच में पाकिस्तान की हरकतों ने भारत को परेशान ज़रूर किया, मगर हर बार जीत भारत की ही हुई.    

आते-जाते रहे प्रधानमंत्री
1951 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकल अली की रावलपिंडी में हत्या कर दी गई. जब वह कंपनी बाग में एक सभा के लिए पहुंचे, तो उन पर गोलियां दागी गईं. पुलिस ने हमलावर को वहीं ढेर कर दिया, लेकिन लियाकत अली को नहीं बचाया जा सका. इसके बाद पाक की सत्ता बंगाली मूल के ख्वाजा नजीमुद्दीन के हाथों में आई. नजीमुद्दीन भी कुछ ही समय PM की कुर्सी पर बैठ पाए. 1953 में उन्हें गवर्नर जनरल मलिक गुलाम ने पद से हटा दिया. कहा जाता है कि नजीमुद्दीन ने ही मलिक गुलाम को गवर्नर जनरल बनाया था. ख्वाजा नजीमुद्दीन के बाद मुहम्मद अली बोगरा को पाकिस्तान का नया प्रधानमंत्री बनाया गया.

प्यार-शादी और प्रदर्शन
बोगरा उस वक्त अमेरिका में पाकिस्तान का राजदूत हुआ करते थे. गवर्नर जनरल गुलाम ने उन्हें पाकिस्तान बुलाया और प्रधानमंत्री बना दिया. बोगरा भी PM की कुर्सी पर ज्यादा वक्त नहीं टिक सके. दरअसल, बोगरा जब राजदूत थे तब उनके ऑफिस में एक लेबनीज महिला स्टेनोग्राफर के रूप में काम करती थी. प्रधानमंत्री बनने के बाद बोगरा ने आलिया को अपनी सेक्रेटरी बनाया और कुछ दिनों के बाद उससे शादी कर ली. बोगरा की यह दूसरी शादी थी और इसे लेकर उनके खिलाफ पाकिस्तान में महिलाओं ने प्रदर्शन शुरू कर दिए. इसके कुछ महीनों के बाद बोगरा और गवर्नर जनरल के बीच मतभेद की खबरें सामने आने लगीं. तबियत खराब होने के चलते गवर्नर जनरल गुलाम इलाज के लिए जब इंग्लैंड गए, तो इस्कंदर अली मिर्जा ने गवर्नर जनरल का पदभार संभाला. उन्होंने बोगरा को प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया और चौधरी मोहम्मद अली को PM की कुर्सी पर बैठाया.

पाक के नए तानाशाह मिर्जा
1956 में पाकिस्तान में गवर्नर जनरल का पद खत्म कर दिया गया और राष्ट्रपति पद की शुरुआत हुई.  इस्कंदर मिर्जा पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति बने. इसी के साथ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री में विवाद शुरू हो गया. मिर्जा के दवाब में चौधरी मोहम्मद अली को इस्तीफा देना पड़ा. अली महज एक साल एक महीने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे. इसके बाद हुसैन शहीद सुहरावर्दी, इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर और सर फिरोज़ खान नून भी कुछ-कुछ देर के लिए प्रधानमंत्री बने. इनके इस्तीफे की वजह भी इस्कंदर मिर्जा ही रहे. 7 अक्टूबर 1958 राष्ट्रपति मिर्जा ने पाकिस्तान में सैनिक शासन लागू कर दिया. उन्होंने जनरल अयूब खान को पाकिस्तान आर्मी का कमांडर इन चीफ बनाया. हालांकि कुछ दिन बाद मिर्जा और अयूब खान के बीच भी मतभेद शुरू हो गया.

फिर अंधेरे कुएं में पाकिस्तान
27 अक्टूबर 1958 को अयूब खान ने मिर्जा को गिरफ्तार किया और देश से निष्कासित कर दिया. मिर्जा पाकिस्तान से इंग्लैंड गए और 12 नवंबर 1969 को लंदन में उनकी मौत हो गई.  अयूब खान ने 1965 में देश में चुनाव कराने का निर्णय लिया. वह पाकिस्तान मुस्लिम लीग के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे. जबकि विपक्ष ने जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना चुनाव में उतारा. कहा जाता है कि आवाम ने फातिमा जिन्ना को दिल खोलकर वोट दिए, इसके बावजूद जीत खान को नसीब हुई. यहां से अयूब खान के खिलाफ पाकिस्तान में माहौल बनना शुरू हुआ और रही-सही कसर भारत के साथ युद्ध से पूरी हो गई. और पाकिस्तान फिर एक अंधेरे कुएं की तरफ बढ़ गया. 

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