जयाप्रदा, जिन्हें बॉलीवुड और तेलुगु सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री के रूप में जाना जाता है, ने राजनीति में कदम रखने के बाद से ही चर्चाओं में बनी रही हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सपा नेता आज़म खान के साथ हुई उनकी तीखी नोकझोंक आज भी सुर्खियों में है। अब यह विवाद कानूनी मुकदमे में तब्दील हो गया है, और जयाप्रदा कोर्ट के समक्ष पेश न होने के कारण गैर-जमानती वारंट (NBW) का सामना कर रही हैं। क्या यह मामला महज लापरवाही है या कोई राजनीतिक रणनीति? आइए, इसके पीछे की कहानी को समझते हैं।
2019 का विवाद: आज़म खान का अभद्र बयान
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सपा नेता आज़म खान ने जयाप्रदा पर एक अभद्र टिप्पणी की थी, जिसने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया। उन्होंने कहा था, “मैं 17 दिन में पहचान गया कि वह खाकी अंडरवियर पहनती हैं।” इस बयान के बाद जयाप्रदा ने आज़म खान के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की। इस मामले में चुनाव आयोग ने आज़म खान को नोटिस भेजा, और जयाप्रदा ने भी उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया।
जयाप्रदा का पलटवार
आज़म खान के बयान का जवाब देते हुए जयाप्रदा ने कहा, “मायावती जी आपको सोचना चाहिए, उनकी एक्स-रे जैसी आंखें आपके ऊपर भी कहां-कहां डालकर देखेंगे।” यह बयान भी विवादों में घिर गया, और जयाप्रदा के खिलाफ आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने का मामला दर्ज किया गया।
कोर्ट का गैर-जमानती वारंट
इस मामले में जयाप्रदा को कई बार कोर्ट में पेश होने के लिए समन जारी किया गया, लेकिन वह हाजिर नहीं हुईं। इसके बाद कोर्ट ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी कर दिया। अब पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। सवाल यह है कि जयाप्रदा ने कोर्ट को नजरअंदाज क्यों किया? क्या यह महज लापरवाही थी या कोई राजनीतिक रणनीति?
राजनीतिक सफर और आज़म खान से रिश्ते
जयाप्रदा ने राजनीति में कदम रखने के लिए आज़म खान की मदद ली थी। 2004 में आज़म खान ने उनकी लोकसभा उम्मीदवारी का समर्थन किया था। हालांकि, बाद के चुनावों में दोनों के बीच तनाव बढ़ गया, और जयाप्रदा ने आज़म खान पर उनकी उम्मीदवारी को कमजोर करने का आरोप लगाया। दोनों के बीच सार्वजनिक मंचों पर तीखी नोकझोंक हुई, और यह विवाद आज तक जारी है।
अब क्या होगा?
जयाप्रदा के सामने अब दो ही रास्ते हैं: या तो वह 3 अप्रैल को कोर्ट में हाजिर हों, या फिर पुलिस कार्रवाई का सामना करें। अगर वह कोर्ट में पेश नहीं होतीं, तो उनकी गिरफ्तारी भी संभव है। सवाल यह भी है कि क्या बीजेपी उन्हें इस मुश्किल घड़ी में समर्थन देगी, या वह इस कानूनी जंग को अकेले लड़ेंगी?
जयाप्रदा का यह मामला सिर्फ एक कानूनी विवाद नहीं है, बल्कि राजनीति और व्यक्तिगत संघर्ष का एक जटिल मिश्रण है। उनका यह सफर बॉलीवुड की चमक से शुरू होकर सियासत की गहराइयों तक पहुंच गया है। अब देखना यह है कि यह कहानी किस मोड़ पर पहुंचती है।
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