भारत में चुनावी राजनीति का एक बड़ा हिस्सा “मुफ्त की योजनाओं” यानी ‘रेवड़ी कल्चर’ पर टिका हुआ है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव जीतने के लिए मुफ्त की योजनाएं घोषित करना गलत है और यह लोगों को आलसी बना रहा है। आइए, समझते हैं कि यह मुद्दा क्यों महत्वपूर्ण है और इसका देश पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।
क्या है रेवड़ी कल्चर?
रेवड़ी कल्चर का मतलब है चुनाव से पहले या सत्ता में आने के बाद मुफ्त में लोगों को लुभाने के लिए योजनाएं घोषित करना। इसमें मुफ्त बिजली, पानी, राशन, पेंशन, बस यात्रा जैसी सुविधाएं शामिल हैं। यह प्रथा पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ गई है, खासकर दिल्ली और कुछ अन्य राज्यों में।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा है कि चुनाव जीतने के लिए ‘मुफ्त’ बांटने की प्रथा लोगों को बेरोजगार बना रही है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुफ्त में मिलने वाली चीजों की वजह से लोग काम से बचने लगे हैं। उन्हें मुफ्त में राशन मिल रहा है. अगर उन्हें बिना काम किए पैसे मिल रहे हैं, तो वे काम क्यों करना चाहेंगे? सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाले दलों से सवाल किया और कहा, क्या हम ऐसी योजनाओं से मुफ्तखोरों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं? कोर्ट ने आगे कहा कि बेहतर होता कि उन्हें मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाता और देश के विकास में योगदान देने का मौका दिया जाता। दरअसल, यह टिप्पणी जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने बेघर लोगों के आश्रय के अधिकार से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान की। लेकिन यह टिप्पणी कितनी अहम है, ये हम आपको कुछ आंकड़ों से समझाते हैं।
कितना खर्च होता है मुफ्त की योजनाओं पर?
देश में मुफ्त की योजनाओं पर हर साल लाखों करोड़ रुपये खर्च होते हैं। कुछ प्रमुख योजनाओं और उन पर होने वाले खर्च का ब्यौरा इस प्रकार है:
- मुफ्त राशन: लगभग 2 लाख करोड़ रुपये सालाना
- पीएम किसान योजना: 75,000 करोड़ रुपये
- मुफ्त बिजली-पानी: 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक
- मुफ्त बस यात्रा: 20,000 करोड़ रुपये
- महिलाओं के लिए योजनाएं: 3 लाख करोड़ रुपये
ये आंकड़े बताते हैं कि मुफ्त की योजनाएं सरकारों पर कितना बोझ डाल रही हैं।
चुनावी राजनीति और मुफ्त की योजनाएं
चुनावी समय में मुफ्त की योजनाएं घोषित करना अब एक आम बात हो गई है। हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस ने बिजली-पानी बिल माफी, महिलाओं को हर महीने 2100-2500 रुपये, मुफ्त बस यात्रा और पेंशन जैसे वादे किए। इसी तरह मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी चुनाव से पहले ऐसी योजनाएं घोषित की गईं।
रेवड़ी कल्चर के नुकसान
- आर्थिक बोझ: मुफ्त की योजनाओं पर होने वाला खर्च सरकारों के लिए एक बड़ा आर्थिक बोझ बन गया है। इससे विकास के लिए जरूरी योजनाओं पर खर्च करने के लिए पैसे की कमी हो जाती है।
- लोगों में आलस: मुफ्त में मिलने वाली सुविधाओं के कारण लोग काम करने से बचने लगे हैं। इससे उनकी उत्पादकता कम हो रही है।
- राज्यों का कर्ज: कई राज्यों पर कर्ज का बोझ बढ़ गया है क्योंकि वे मुफ्त की योजनाओं को चलाने के लिए उधार ले रहे हैं।
- विकास की कमी: मुफ्त की योजनाओं पर खर्च होने के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में निवेश कम हो रहा है।
क्या होना चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या सरकारों को मुफ्त की योजनाएं बंद कर देनी चाहिए? विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारों को ऐसी योजनाएं लानी चाहिए जो लोगों को आत्मनिर्भर बनाएं। उदाहरण के लिए:
- युवाओं को रोजगार के अवसर दिए जाएं।
- महिलाओं को घर बैठे काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
- कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए।
- छोटे और मझोले उद्योगों को सपोर्ट किया जाए।