
हाईलाइट्स
- पुलिस ने शर्मिष्ठा पलोनी को विलेन बनाया!
- TMC नेताओं के बिगड़े बोल पर चुप्पी क्यों?
- हिंदू भावनाएं आहत हों तो कानून खामोश?
- ममता के बंगाल में हिन्दुओं पर अत्याचार?
Sharmistha Panoli News: एक वीडियो… एक माफी… और फिर सीधा जेल, क्या यही है अभिव्यक्ति की आज़ादी की कीमत? सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर और लॉ स्टूडेंट शर्मिष्ठा पनोली जिनकी एक पोस्ट ने बंगाल की सत्ता को हिला दिया। ममता बनर्जी की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया, लेकिन सवाल उठ रहे हैं क्या ये न्याय है या सियासी बदला? क्या शर्मिष्ठा की गलती इतनी बड़ी थी, कि माफी और पछतावे के बाद भी सलाखें ही एकमात्र रास्ता थीं जब टीएमसी के नेता खुलेआम धर्म का अपमान करें, तब कानून खामोश क्यों हो जाता है?
शर्मिष्ठा पनोली ने क्या गुनाह किया है?
सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर और लॉ स्टूडेंट शर्मिष्ठा पनोली आज एक राजनीतिक बहस का केंद्र बन चुकी हैं। ऑपरेशन सिंदूर नाम के एक वीडियो को लेकर वह विवादों में घिरीं और कोलकाता पुलिस ने उन्हें हरियाणा के गुरुग्राम से गिरफ्तार कर लिया। आरोप है कि उन्होंने एक विशेष समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत कीं, हालांकि गिरफ्तारी से पहले ही शर्मिष्ठा ने माफी मांग ली थी और विवादित वीडियो को सोशल मीडिया से हटा दिया था। इसके बावजूद ममता बनर्जी की सरकार की पुलिस ने जिस तेजी से कार्रवाई की, उसने कई सवालों को जन्म दिया है। एक तरफ जहां शर्मिष्ठा ने अपनी गलती स्वीकार कर ली थी, वहीं दूसरी ओर कोलकाता पुलिस की तुरंत कार्रवाई को भाजपा और सोशल मीडिया का एक बड़ा तबका राजनीति से प्रेरित बता रहा है।
TMC की मुस्लिम तुष्टिकरण वाली राजनीति!
भाजपा ने इस मामले को चुनिंदा कार्रवाई और तुष्टिकरण की राजनीति का उदाहरण करार दिया है। पार्टी का आरोप है कि जब TMC के नेताओं ने इससे भी अधिक विवादित बयान दिए थे, तब ममता सरकार ने उन्हें न केवल बचाया, बल्कि कोई कानूनी कार्रवाई भी नहीं की। यह पहला मौका नहीं है जब बंगाल में धार्मिक भावनाओं को लेकर दोहरा मापदंड अपनाया गया हो। TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने 2022 में मां काली को मांस खाने वाली और शराब स्वीकार करने वाली देवी बताया था। इस बयान के खिलाफ देशभर में FIR दर्ज हुईं, मगर उन्हें न तो गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा TMC नेता सायोनी घोष ने भगवान शिव को लेकर आपत्तिजनक पोस्ट की थी। विवाद हुआ, FIR हुई, मगर गिरफ्तारी नहीं। हुमायूं कबीर नाम के TMC विधायक ने अपने क्षेत्र के 30% हिंदुओं को भागीरथी नदी में फेंकने की बात कही थी, और मदन मित्रा ने भगवान परशुराम को बीफ़ खाने वाला बताया था, वह भी यह कहकर कि माता सीता उन्हें बीफ बनाकर देती थीं। ये बयान सिर्फ आपत्तिजनक ही नहीं थे, बल्कि लाखों लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले थे। फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
शर्मिष्ठा पनोली के पक्ष में जनता, ममता को फर्क नहीं पड़ता?
ऐसे में जब एक लॉ स्टूडेंट जो सिर्फ एक वीडियो के माध्यम से अपनी राय रख रही थी और बाद में माफी भी मांग चुकी थी उसे जेल भेज दिया गया, तो इस कार्रवाई को लेकर लोगों में गुस्सा स्वाभाविक है। सोशल मीडिया पर #JusticeForSharmistha ट्रेंड कर रहा है। फिल्मी हस्तियों से लेकर राजनीतिक विश्लेषक तक इस मामले को लेकर सवाल उठा रहे हैं। पवन कल्याण, कंगना रनौत जैसे लोग शर्मिष्ठा के पक्ष में आ चुके हैं। कई लोगों का कहना है कि यह सिर्फ एक गिरफ्तारी नहीं, बल्कि एक महिला की आवाज़ को दबाने की कोशिश है जो किसी राजनीतिक विचारधारा से मेल नहीं खाती। और उससे भी ज्यादा घेरे में इस वक़्त बंगाल की पुलिस है, बीजेपी का कहना है कि ममता बनर्जी बंगाल में एकतरफा राजनीति कर रही हैं, और जब भी मामला एक विशेष समुदाय से जुड़ा होता है, तो उनकी सरकार अलर्ट मोड पर आ जाती है। मगर जब हिंदू धर्म पर आघात होता है, तब वही सरकार चुप रहती है। जब वक़्फ़ कानून पास हुआ था, तब मुर्शिदाबाद में हिंसा हुई, लेकिन ममता बनर्जी मौलानाओं के साथ बैठकों में व्यस्त रहीं।
बंगाल चुनाव के लिए अहम मुद्दा बनी शर्मिष्ठा पनोली!
भाजपा का यह भी आरोप है कि ममता सिर्फ सत्ता बचाने के लिए तुष्टिकरण की राजनीति कर रही हैं और राज्य में संविधान से नहीं, बल्कि वोटबैंक से शासन चल रहा है। शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी अब एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है, जिसे भाजपा अगले साल होने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव में जोर-शोर से उठाने वाली है। यह मामला न सिर्फ कानून के दोहरे मापदंड को उजागर करता है, बल्कि इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि कैसे एक युवती की आवाज को इसलिए दबा दिया गया क्योंकि वह सत्ताधारी दल की विचारधारा से मेल नहीं खाती। ममता बनर्जी की पुलिस ने जिस तेजी से कार्रवाई की, वह एक उदाहरण बन गया है लेकिन एक नकारात्मक उदाहरण। इस पूरे प्रकरण ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया तूफान खड़ा कर दिया है। बीजेपी सवाल उठा रही है अगर शर्मिष्ठा पनोली को कानून का उल्लंघन मानते हुए जेल में डाला जा सकता है, तो TMC के उन नेताओं को क्यों नहीं, जिन्होंने बार-बार समाज में ज़हर घोलने वाले बयान दिए हैं? क्या कानून सबके लिए समान नहीं होना चाहिए? या फिर बंगाल में अब कानून भी राजनीति से संचालित हो रहा है? शर्मिष्ठा पनोली आज भले ही जेल में हों, लेकिन उनकी गिरफ्तारी ने बंगाल की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है – यह बहस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, न्याय और सत्ता के दमनकारी चेहरे को उजागर करने वाली है।