Home Breaking News प्रेमानंद महाराज ने पूछा कुछ ऐसा, विराट-अनुष्का के चेहरे पर आ गई मुस्कान

प्रेमानंद महाराज ने पूछा कुछ ऐसा, विराट-अनुष्का के चेहरे पर आ गई मुस्कान

by ION Bharat

टेस्ट क्रिकेट से संन्यास के बाद बाद विराट कोहली अपनी पत्नी अनुष्का शर्मा सहित प्रेमानंद महाराज का आशीर्वाद लेने पहुंचे. सोशल मीडिया पर दोनों की मुलाकात का वीडियो वायरल हो रहा है. इस दौरान, वृंदावन वाले प्रेमानंद महाराज ने कुछ ऐसा पूछ लिया कि विराट और अनुष्का के चेहरे बड़ी सी स्माइल आ गई.

पहले भी लिया था आशीर्वाद
विराट कोहली जब प्रेमानंद महाराज से मिले, तो उन्होंने कोहली से पूछा कि तुम खुश हो? यह सुनते ही विराट और अनुष्का के चेहरे पर मुस्कान आ गई. कोहली ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया – जी मैं खुश हूं. प्रेमानंद महाराज ने कोहली और अनुष्का से काफी देर बात की. कोहली और अनुष्का महाराज जी की बातों को सुनते रहे. प्रेमानंद महाराज से आशीर्वाद लेकर विराट कोहली और अनुष्का काफी खुश नजर आ रहे थे. दोनों श्री राधाकेलीकुंज आश्रम में करीब तीन घंटे तक रुके. विराट कोहली प्रेमानंद महाराज को काफी मानते हैं. कुछ समय पहले जब वह अच्छे फॉर्म में नहीं थे, तो प्रेमानंद महाराज के आश्रम पहुंचकर आशिर्वाद लिया था.

यश बढ़ना भगवान की कृपा नहीं…
विराट के ठीक हूं कहने के बाद प्रेमानंद महाराज ने कहा कि हम आपको अपने प्रभु का विधान बताते हैं. जब प्रभु किसी पर कृपा करते हैं, ये वैभव मिलना कृपा नहीं है, ये पुण्य है. पुण्य से एक घोर पापी को भी वैभव मिलता है. ये वैभव बढ़ना या यश बढ़ना भगवान की कृपा नहीं मानी जाती. भगवान की कृपा मानी जाती है अंदर का चिंतन बदलना. जिससे आपके अनंत जन्मों के संस्कार भस्म होकर और अगला जो है वो बड़ा उत्तम होगा. अंदर की चिंतन से होता है बाहर से कुछ नहीं होता है. अंदर का चिंतन हमलोगों का स्वभाव बन गया बैरमुखी. बैरमुखी मतलब बाहर. बाहर यानी यश, कीर्ति, लाभ, विजय, इससे हमें सुख मिलता है. अंदर से कोई मतलब नहीं रखता कोई. अब क्या होता है जब भगवान कृपा करते हैं तो संत समागम देते हैं. दूसरी बार जब कृपा होती है तो विपरीतता देते हैं और फिर अंदर से एक रास्ता देते हैं. ये परम शांति का रास्ता है. भगवान शांति का रास्ता देते हैं और जीव को अपने पास बुला लेते हैं. बिना प्रतिकूलता के संसार का राग नष्ट नहीं होता. किसी को वैराग्य होता है तो संसार की प्रतिकूलता देखकर वैराग्य होता है. सबकुछ हमारे अनुकूल है तो हम आनंदित होकर उसका भोग करते हैं, जब हमारे ऊपर प्रतिकूलता आती है तब हमें ठेस पहुंचती है कि इतना झूठा संसार. तो अंदर से भगवान रास्ता देते हैं कि ये सही है. बिना प्रतिकूलता के इस संसार को छुड़ाने की कोई औषधि नहीं रखी.

प्रतिकूलता का दर्शन करके बदला जीवन
उन्होंने आगे कहा कि आज तक जितने बड़े महापुरुष हुए हैं, जिनका जीवन बदला है, उनका जीवन प्रतिकूलता का दर्शन करके बदला है. तो कभी प्रतिकूलता आए तो उस समय आनंदित होकर समझें कि अब मेरे ऊपर भगवान की कृपा हो रही है. मुझे सतमार्ग पर चलने की प्रेरणा मिल रही है. अपना सुधार कर लो, अपने जीवन को सत्य में ले आओ तो अगला जो होगा वो बहुत जोर का होगा. अगर इस जन्म में भगवत की प्राप्ति नहीं हुई, तो भगवान श्रीकृष्णा ने गीता में कहा है- भक्त का नाश नहीं होता. मैं कुलवान, धनवान के कुल में जन्म देता हूं और फिर पुन: भक्ति का माहौल देता हूं, पूर्व का जो भजन छूटा हुआ है, वहीं से उसको ऊपर उठाता हूं. बिल्कुल ऐसे रहो जैसे रह रहे हो, बिल्कुल संसारिक बनकर रहो, लेकिन कोशिश करें कि अंदर का चिंतन आपका बदल जाए. अंदर के चिंतन में धन बढ़ाने की भावना न रह जाए। अंदर के चिंतन में रहे- प्रभु बहुत जन्म व्यतीत हो गए, अब एक बार आपसे मिलना चाहते हैं. मुझे अब बस आप चाहिए, संसार नहीं. तो इससे बात बन जाएगी. इसलिए आनंदपूर्वक भगवान के नाम का जप करो, बिल्कुल चिंता मत करो.

अनुष्का के सवाल पर यह बोले महाराज
इसके बाद अनुष्का शर्मा ने पूछा कि बाबा क्या नाम जप से हो जाएगा? इस पर संत प्रेमानंद ने कहा- पूरा. ये हम अपने जीवन का अनुभव बताते हैं. सांखयोग, अष्टांगयोग, कर्मयोग और भक्तियोग, चारों योगों में प्रवेश रहा है. हम 20 वर्ष संयासी रहे हैं. स्वयं भगवान शंकर से बढ़कर तो कोई ज्ञानी नहीं है, सनकादि से बढ़कर कोई ज्ञानी नहीं है. सनकादि ‘हरिशरणम, हरिशरणम’ हमेशा जपते रहते हैं. भगवान शिव राम राम राम राम जपते रहते हैं. हम वृंदावनवासी प्रिया प्रितम के उपासी राधा राधा जपते हैं. हमारी तार्किक बुद्धि रही है श्रद्धालु बुद्धि नहीं रही है. अगर आप राधा राधा जपते हो तो इसी जन्म में भगवत की प्राप्ति होगी. हमारी आखिरी सांस अगर राधा कहती है तो सीधे श्री जी की प्राप्ति, भगवान की प्राप्ति हो जाएगी. इसमें कोई संशय नहीं और किसी साधन की कोई आवश्यकता नहीं. अगर आप राधा लिख रहे हो तो मन भागेगा नहीं. तो चाहे 10 बार लिखो या 100 बार लिखो, लेकिन एक अभ्यास बनाओ. कुछ समय शांति से स्नान आदि करके राधा-राधा लिखें और फिर उसी का चिंतन भी करें. इसे अपना जीवन बना लें फिर आप परिणाम खुद देख लेना.

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