
हाईलाइट्स
- भारत को अमेरिका ने दी 500% टैरिफ लगाने की धमकी!
- रूस से तेल, गैस और पेट्रोकेमिकल्स खरीदते हैं भारत-चीन
- रूस ने RIC त्रिकोण को फिर से शुरू करने पर दिया जोर
New Delhi Desk: अमेरिका की धमकियों और 500% टैरिफ की गूंज के बीच अब एशिया से आया है करारा जवाब। भारत, चीन और रूस ने हाथ मिला लड़ने की तैयारी कर ली है। तीन महाशक्तियाँ अब एकजुट होकर अमेरिका की आर्थिक बादशाहत को चुनौती देने को तैयार हैं। RIC गठबंधन अब सिर्फ कूटनीति नहीं, एक रणनीतिक हथियार बन चुका है, जो वॉशिंगटन की नींव हिला सकता है। यह नया मोर्चा साफ करता है: अब टैरिफ से नहीं, ताकत से बात होगी।
क्या है पूरा मामला?
अमेरिका ने एक बार फिर अपने सबसे बड़े हथियार, टैरिफ की धमकी, का इस्तेमाल कर दुनिया को झुकाने की कोशिश की है, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। यूक्रेन की राजधानी कीव से अमेरिकी सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथल का यह ऐलान कि भारत और चीन जैसे देश अगर रूस से तेल, गैस या पेट्रोकेमिकल खरीदते रहे, तो उन पर 500% टैरिफ लगाया जाना चाहिए, न सिर्फ एक आर्थिक धमकी है, बल्कि एक साफ इशारा है कि अमेरिका अब खुलकर टैरिफ वॉर छेड़ने जा रहा है।
लेकिन ये 2000 का दशक नहीं है। भारत, चीन और रूस जैसे एशियाई महाशक्तियों को अमेरिका अब यूँ आंख दिखाकर नहीं डरा सकता। खासतौर पर भारत, जो दशकों से अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता और वैश्विक संतुलन की नीति पर अडिग रहा है, अब अमेरिका की दादागीरी को खुली चुनौती देने को तैयार है।
RIC को जिंदा करना चाहता है रूस
रूस ने जब से भारत-चीन-रूस यानी RIC त्रिकोण को फिर से ज़ोर-शोर से शुरू करने की बात कही है, तब से एशिया में एक नई धुरी का उदय होता दिख रहा है. एक ऐसी धुरी जो अमेरिका की आर्थिक गुंडागर्दी और टैरिफ की ताकत को जवाबी हथियार से जवाब देने के लिए कमर कस चुकी है। रूस का यह बयान कि अब भारत और चीन के बीच सीमा तनाव कम हो गया है, RIC की बैठकें शुरू होनी चाहिए, एक साफ संकेत है कि एशिया अमेरिका के खिलाफ एकजुट हो रहा है। अमेरिका की लगातार आर्थिक ब्लैकमेलिंग, रणनीतिक हस्तक्षेप और दोहरे मानदंडों से तंग आकर अब भारत, चीन और रूस एक वैकल्पिक वैश्विक गठबंधन की ओर बढ़ते दिख रहे हैं। एक ऐसा गठबंधन जो न सिर्फ अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देगा, बल्कि टैरिफ वॉर को उसकी ही भाषा में जवाब देगा। अमेरिका यह समझने में नाकाम रहा है कि भारत अब किसी का पिछलग्गू नहीं है। यह वही देश है जिसने गलवान जैसी घटनाओं के बावजूद चीन के साथ वार्ता का रास्ता खुला रखा, रूस के साथ ऊर्जा संबंधों को कायम रखा, और अमेरिका के तमाम दबावों के बावजूद तेल और गैस की खरीद जारी रखी। और अब, जब अमेरिका अपने राजनीतिक एजेंडे के तहत एकपक्षीय टैरिफ लगाने की बात कर रहा है, तब RIC की वापसी अमेरिका के लिए कूटनीतिक और आर्थिक झटका बन सकती है।
ट्रंप के खिलाफ अमेरिका में विरोध शुरु!
वहीं अमेरिका के भीतर भी विरोध के सुर तेज हो रहे हैं। ट्रंप समर्थक तक अब उनके निर्णयों से किनारा कर रहे हैं, और यह साफ हो गया है कि अमेरिका की टैरिफ रणनीति अब अंदर से खोखली हो चुकी है। ट्रंप के दौर में जिस अमेरिका फर्स्ट नीति ने दुनिया को अस्थिर किया, अब वो ट्रंप के अपने घर में ही दम तोड़ती नज़र आ रही है। यूरोपीय सहयोगी खामोश हैं, एशियाई देश विद्रोह पर उतर आए हैं, और ट्रंप का खुद का कुनबा अब उनके टैरिफ फैसलों के साथ नहीं खड़ा है। ऐसे में भारत-चीन-रूस की त्रयी अगर अमेरिका के खिलाफ टैरिफ युद्ध में उतरती है, तो ये सिर्फ अमेरिका की आर्थिक नीतियों की विफलता नहीं, बल्कि उसकी वैश्विक रणनीतिक गिरावट का प्रतीक होगा। यह समय है जब भारत अमेरिका की आंखों में आंख डालकर कहे कि हमारी ऊर्जा नीति हमारे हितों के हिसाब से चलेगी, न कि तुम्हारी धमकियों से।
RIC अब सिर्फ एक त्रिकोणीय मंच नहीं, बल्कि एक भविष्य की वैश्विक ताकत बन सकता है। एक ऐसा मंच जो अमेरिका की Divide and Rule नीति को फेल कर सकता है। टैरिफ अब सिर्फ एक टैक्स नहीं, बल्कि नई शीतयुद्ध की शुरुआत है, और इस बार अमेरिका अकेला पड़ता दिख रहा है। भारत को अब स्पष्ट रूप से RIC को मजबूत करना चाहिए, चीन के साथ रणनीतिक समझ बढ़ानी चाहिए और रूस के साथ गहराते संबंधों को अमेरिका की टैरिफ साजिश के खिलाफ एक कवच बनाना चाहिए। क्योंकि ये सिर्फ तेल या गैस की बात नहीं है। ये आर्थिक स्वतंत्रता, रणनीतिक स्वाभिमान और एशिया के नए नेतृत्व की लड़ाई है, और इसमें भारत पीछे नहीं हटेगा।