नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई डॉक्यू-सीरीज ‘अमेरिकन मैनहंट: ओसामा बिन लादेन’ इस समय चर्चा में है. 3 एपिसोड की इस सीरीज में लादेन के सफाए के ऑपरेशन के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसमें सीआईए और नेवी सील्स से जुड़े लोगों के इंटरव्यू भी शामिल हैं. मोर लौशी और डेनियल साइवन के निर्देशन में तैयार इस सीरीज ने दुनिया के मोस्ट वॉन्टेड आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के खिलाफ अमेरिकी ऑपरेशन की यादों को एक बार फिर ताजा कर दिया है.
हमले के बाद तेज हुआ अभियान
इस सीरीज में यह भी बताया गया है कि उस वक्त की बराक ओबामा सरकार ने 2 मई, 2011 की रात को बिन लादेन के ठिकाने पर छापा मारने के अपने निर्णय से पाकिस्तान सरकार को अवगत क्यों नहीं कराया था. अमेरिका ने ट्विन टावर्स और पेंटागन (अमेरिकी रक्षा विभाग का मुख्यालय) पर 11 सितंबर, 2001 के हमलों से पहले ही लादेन को खोजने का अभियान शुरू कर दिया था. अमेरिकी धरती पर हुए इस सबसे बड़े आतंकी हमले में करीब 3,000 अमेरिकी मारे गए थे. इसने लादेन के खिलाफ अमेरिकी ऑपरेशन को तेज कर दिया.
ऐबटाबाद में डाला डेरा
अमेरिकी अधिकारी अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान में लादेन की खोज का रहे थे. खुफिया जानकारी और सैटेलाइट इमेजरी से उसकी पाकिस्तान में मौजूदगी का पता चला. इसके बाद अमेरिकी खुफिया अधिकारी पाकिस्तान के ऐबटाबाद में स्थित एक तीन मंजिला सफेद हवेली तक पहुंचे, जिसमें दो परिवार आते-जाते थे. हालांकि ऐसा लगता था कि वहां एक तीसरा परिवार भी रहता है. हवेली में ऊंची दीवारें और एक ढकी हुई बालकनी थी, जो पहाड़ों के सुंदर दृश्यों के लिए मशहूर शहर में अलग से दिखाई देती थी. चूंकि ये पूरी तरह स्पष्ट नहीं था कि हवेली में रहने वाली तीसरी फैमिली कौन है, अमेरिका के लिए हमला बोलना थोड़ा मुश्किल हो गया.
फैसले पर कायम रहे ओमाबा
अमेरिका में इस पर मंथन शुरू हुआ कि क्या ठोस सबूत के बिना और पाकिस्तान को सूचित किए बगैर धावा बोलना सही होगा? तत्कालीन विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने इसका समर्थन किया, जबकि उपराष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसका विरोध किया. आखिरकार, ओबामा प्रशासन ने विरोध को दरकिनार करते हुए आगे बढ़ने का निर्णय लिया. जॉन ब्रेनन, जो मिशन के समय बराक ओबामा के मुख्य आतंकवाद-रोधी सलाहकार थे, ने नेटफ्लिक्स की डॉक्युमेंट्री में बताया कि राष्ट्रपति ओबामा इस बात पर स्पष्ट थे कि हम पाकिस्तानियों को सूचित नहीं करेंगे, क्योंकि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां कई वर्षों से दोनों तरफ काम कर रही हैं, और उनके अल-कायदा सहित कई उग्रवादी एवं आतंकवादी समूहों के साथ संबंध थे.
पाक जानता था सबकुछ
ओमाबा की किताब ए प्रॉमिस्ड लैंड (2020) में पूर्व राष्ट्रीय खुफिया अधिकारी ब्रूस रीडेल की एक रिपोर्ट का भी उल्लेख किया गया है. इसमें कहा गया है कि पाकिस्तानी सेना और ISI को लादेन की उपस्थिति का पता था. पाकिस्तान अफगान सरकार को कमजोर करने और भारत-काबुल के संभावित गठबंधन के खिलाफ तालिबान की सहायता भी कर रहा था. हालांकि, अफगानिस्तान में अपने अभियान के लिए अमेरिका को अब भी पाकिस्तान की ज़रूरत थी. फिर भी, ओबामा इस बात को लेकर स्पष्ट थे कि बिन लादेन मिशन के लिए हमने जो भी विकल्प चुना, उसमें पाकिस्तानियों को शामिल नहीं किया जा सकता. हमें इसका खतरा था कि अगर पाकिस्तान को इस बारे में सूचित किया जाता है, तो लादेन और अलकायदा को इसकी भनक लग सकती है. क्योंकि ऐबटाबाद पाकिस्तान सेना के वेस्ट प्वाइंट से कुछ ही मील की दूरी पर था.
गुपचुप खत्म किया ऑपरेशन
2 मई, 2011 को अमेरिकी नेवी सील्स की एक विशेष टीम गुपचुप पाकिस्तान के ऐबटाबाद पहुंची. ऑपरेशन नेप्चयून स्पियर के तहत रात के अंधेरे में दो स्टील्थ ब्लैकहॉक हेलीकॉप्टरों ने यूएस जवानों को परिसर तक पहुंचाया. इस अभियान में ओसामा बिन लादेन के बेटे हमजा सहित कई लोग मारे गए. नेवी सील रॉबर्ट ओ’नील ने बाद में दावा किया था कि उन्होंने बिन लादेन को गोली मारी थी. जब अमेरिका के इस मिशन की खबर सामने आई तो पूरी दुनिया भौचक रह गई, पाकिस्तान को यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है. पाकिस्तानी सरकार ने बिन लादेन के ठिकाने के बारे में कोई जानकारी होने से इनकार किया. लादेन के घर से एकत्रित फाइलों से पता चला कि लादेन और लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद जैसे नेताओं के बीच नियमित पत्राचार होता था, जिसे पाकिस्तान सरकार समर्थन देती आई है.