
Delhi: अब खुद FATF को भी यह सच्चाई समझ में आ गई है कि पहलगाम जैसा बर्बर आतंकी हमला बिना टेरर फंडिंग के संभव ही नहीं था और यह फंडिंग किसी आम source से नहीं बल्कि एक well planned स्टेट स्पॉन्सर्ड टेररिज्म के तहत हुई है। जिसका सबसे बड़ा केंद्र पाकिस्तान है। FATF ने पहली बार खुले तौर पर इस Concept को स्वीकार किया है कि आतंकवाद के पीछे सरकारों का हाथ भी हो सकता है, और अब वह यह मान रहा है कि ऐसे खतरनाक नेटवर्क को रोकने के लिए सभी देशों को मिलकर काम करना होगा। मगर सवाल यह है कि जब भारत सालों से पुख्ता सबूतों के साथ यह कह रहा था कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय कर्ज के नाम पर जो अरबों डॉलर मिलते हैं, वो अंत में उसी की सेना के ज़रिए आतंकियों के पास पहुंच जाते हैं, तो फिर 2022 में FATF ने कैसे आंखें मूंद लीं और पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया? अब जबकि पहलगाम की वीभत्स त्रासदी ने दुनिया को झकझोर दिया है, FATF को भी मानना पड़ रहा है कि पाकिस्तान सच में एक आतंकवाद पालने वाला राष्ट्र यानी Terror State बन चुका है, और उसे नजरअंदाज करना अब पूरे विश्व के लिए घातक हो सकता है।
FATF यानी Financial Action Task Force ने भी इस हमले की निंदा करते हुए कहा है कि यह हमला बिना वित्तीय मदद के संभव नहीं था। सीधे तौर पर उसका इशारा पाकिस्तान की तरफ था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है, जब सब कुछ इतना स्पष्ट था, तो पाकिस्तान को 2022 में लिस्ट से क्यों हटा दिया गया था? चलिए इन सब पर आगे बात करेंगे लेकिन सबसे पहले जानते हैं की आखिर FATF क्या है।
FATF का पूरा नाम है Financial Action Task Force
हिंदी में इसे वित्तीय कार्रवाई कार्यबल कहते हैं
FATF की स्थापना 1989 में G7 देशों की पहल पर हुई थी
इसका उद्देश्य था- मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना
आतंकवादी गतिविधियों के लिए फंडिंग की निगरानी
देशों की जांच करना कि वो इन खतरों से कैसे निपटते हैं
जरूरी सुधार के लिए सुझाव देने और उनपर अमल करवाना
अनियमित देशों को “लिस्ट” में डालना
FATF की दो प्रमुख लिस्ट हैं ग्रे लिस्ट और ब्लैक लिस्ट
ग्रे लिस्ट (Grey List):
उन देशों को इसमें रखा जाता है जो मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग रोकने में विफल होते हैं, लेकिन सुधार का वादा करते हैं। इन पर वित्तीय निगरानी बढ़ जाती है। निवेशक और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इन देशों से दूरी बनाती हैं।
ब्लैक लिस्ट (Black List):
यह सबसे गंभीर चेतावनी होती है। इसमें वो देश आते हैं जो FATF के नियमों का पालन बिलकुल नहीं करते और आतंक को खुले रूप से समर्थन देते हैं। इन पर वैश्विक आर्थिक प्रतिबंध लग सकते हैं। FATF का मुख्यालय पेरिस में स्थित है। इस वक़्त FATF के 40 सदस्य देश हैं। FATF ने कुल 40 सिफारिशें तैयार की हैं। ये सिफारिशें हर देश को लागू करनी होती हैं ताकि टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग रोकी जा सके।
भारत 2010 से FATF का पूर्ण सदस्य है।
भारत लगातार आतंकवाद फैलाने वाले देशों खासकर पाकिस्तान के खिलाफ सबूत देकर कार्रवाई की मांग करता रहा है। अब यहां सबसे बड़ा सवाल ही यही है की आखिर पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट से क्यों हटाया गया। क्योंकि ये साफ़ है की अगर पाकिस्तान FATF की ग्रे लिस्ट में होता तो पहलगाम जैसा आतंकी हमले को टाला जा सकता था। और पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट से हटाने को एक ऐतिहासिक भूल माना जाता है। पाकिस्तान को 2018 में FATF की ग्रे लिस्ट में डाला गया था। भारत ने तब दुनिया को स्पष्ट सबूतों के साथ बताया था कि पाकिस्तान की सेना और ISI आतंकी संगठनों जैसे जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन को फंडिंग, हथियार और Training देती है। लेकिन 2022 में FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से हटा दिया। सवाल उठता है कि कैसे? 2022 में FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से इसलिए हटा दिया क्योंकि उसने दिखाया कि उसने आतंकवाद की फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए ज़रूरी क़ानूनी बदलाव किए हैं और कुछ संगठनों पर कार्रवाई की है, लेकिन यह फैसला केवल कागज़ी सुधारों के आधार पर लिया गया था, जबकि हकीकत में पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियां अब भी आतंकवादी समूहों को समर्थन देती रही हैं। भारत ने बार-बार सबूत दिए कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से मिले पैसे का दुरुपयोग कर रहा है और उसका इस्तेमाल आतंकी संगठनों तक पहुंचाया जा रहा है। 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने साबित कर दिया कि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से हटाना एक गलत निर्णय था, क्योंकि आतंकवाद अब भी वहीं से पनप रहा है और दुनियाभर में फैल रहा है। भारत लगातार गला फाड़कर कहता रहा कि पाकिस्तान को कम से कम ग्रे लिस्ट में रखना ही नहीं, उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेनकाब करना वक्त की पुकार है। पर FATF ने चुप्पी ओढ़ ली, और नतीजा?
IMF ने पाकिस्तान की झोली में 760 मिलियन डॉलर ऐसे डाल दिए जैसे वो किसी भूखे को रोटी बांट रहे हों। पर यह कर्ज भूख नहीं, आतंकवाद में खर्च होगा, क्योंकि भारत पहले ही चेता चुका था: ये रकम आतंक के काफिले में तब्दील होकर पाकिस्तानी फौज के रास्ते उन दरिंदों तक पहुंचेगी जिनके हाथ बच्चों के खून से रंगे हैं। और फिर ऑपरेशन सिंदूर आया, भारत ने आतंक के ठिकानों को मिट्टी में मिला दिया। लेकिन पाकिस्तान ने क्या किया? मारे गए आतंकी सरगनाओं को राजकीय सम्मान देकर दफनाया जैसे वो शहीद हों, जैसे मानवता की हत्या पर उन्हें कोई पछतावा न हो, बल्कि गर्व हो। यह दृश्य सिर्फ शर्मनाक नहीं, FATF की आंखों में धूल झोंकने वाली एक नंगी हकीकत है। और इस हकीकत पर पर्दा डालने का काम एक वक़्त अमेरिका ने भी किया था। हाँ, पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट से हटाने में अमेरिका की भूमिका निर्णायक रही है। साल 2018 से पाकिस्तान FATF की ग्रे लिस्ट में था, क्योंकि वह टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने में fail हो गया था। अमेरिका ने रणनीतिक कारणों से पाकिस्तान का पक्ष लिया। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी के दौरान अमेरिका को पाकिस्तान की Geopolitical situation और उसकी खुफिया एजेंसी ISI की जरूरत थी। इस कारण, अमेरिका ने पाकिस्तान पर दबाव बनाने की बजाय उसे एक जिम्मेदार साझेदार के रूप में दिखाने की कोशिश की। इसके चलते, 2022 में जब FATF की टीम ने पाकिस्तान का दौरा किया, तो अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने पाकिस्तान की प्रगति को सकारात्मक बताया, जबकि जमीनी हकीकत में आतंकियों को सजा दिलाने या आतंकी संगठनों को बंद करने जैसी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई थी। भारत की आपत्तियों के बावजूद पाकिस्तान को अक्टूबर 2022 में FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया गया। यह कदम सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि पूरी तरह राजनीतिक था, जिसमें अमेरिका के हित सर्वोपरि थे। इससे यह भी साफ़ होता है कि आतंक के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में अमेरिका ने पाकिस्तान का ही साथ दिया जो दशकों से आतंवादियों का रखवाला रहा है। और सवाल ये भी है की क्या एक बार फिर पाकिस्तान को बचाने अमेरिका आगे आएगा। क्योंकि इसके पीछे भी ट्रम्प का personal फायदा है।
ट्रूप के परिवार के लोग इस वक़्त पाकिस्तान के साथ डिजिटल करेंसी में डील कर रहे हैं। और ये करेंसी हवाला नेटवर्क को बढ़ावा देने का हथियार माना जा रहा है। और ये बात भी सामने आई की जब पाकिस्तान में ऑपरेशन सिन्दूर चल रहा था तो पाकिस्तान में ट्रम्प के परिवार के लोग इसी डिजिटल करेंसी की डील को लेकर पाकिस्तान में मौजूद थे. तो क्या पाकिस्तान के साथ एक बार फिर पाकिस्तान खड़ा हो जाएगा। क्योंकि 1947 से ही अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है। हालाँकि बाद में जब बराक ओबामा आए और भारत के प्रधानमंत्री मोदी बने तो अमेरिका की नीति में बदलाव आया। हमने देखा कैसे पाकिस्तान के घर में घुस कर अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को ठिकाने लगाया। और मोदी की नीति ने अमेरिका को पाकिस्तान के खिलाफ कर दिया। और ट्रम्प के कार्यकाल में भी हमने देखा था की वो अपने पहले टर्म में भारत के साथ खड़े थे लेकिन अपने दूसरे टर्म में वो 360 डिग्री टर्न ले चुके हैं क्योंकि ट्रम्प भारत के साथ ट्रम्प अपनी शर्तों पर ट्रेड करना चाहते थे लेकिन भारत ने झुकने से साफ़ इंकार कर दिया। इसलिए सवाल खड़े हो रहे हैं की क्या अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा होगा? हालाँकि इस वक़्त अमेरिका के रवैये से पूरा विश्व वाकिफ है। ट्रम्प की तानाशाही पूरा विश्व देख रहा है। ऐसे में fatf की ग्रे लिस्ट में जाने से पाकिस्तान को ट्रम्प कितना रोक पाएंगे, ये तो वक़्त बताएगा।