नवेद शिकोह
स्वतंत्र पत्रकार, लखनऊ
देश-दुनिया के पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को एकजुट कर उनके हक-हुकूक की लड़ाई की परंपरा को धार देने वाले इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के विक्रम राव का निधन हो गया है. छह दशक से निरंतर चली आ रही कलम अब खामोश हो गई है. सांस संबंधित समस्या के बाद आज तड़के उन्हें लखनऊ के एक अस्पताल ले जाया गया, जहां कलम के इस सिपाही ने जिंदगी से हार मान ली.
मीडिया कर्मियों की आवाज विश्वभर में बुलंद करने वाले राव साहब के जाने से IFWJ यतीम हो गया है. कई देशों में फैली पत्रकार यूनियन चलाने के साथ उनकी कलम भी निरंतर चलती रही. तमाम भाषाओं पर मजबूत पकड़ रखने वाले राव साहब ने देश के विख्यात अखबारों में काम किया और दशकों तक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में दुनियाभर के पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख छपते रहे. इमरजेंसी के जमाने में जेल जाने वाले पत्रकारों के इस भीष्म पितामाह ने अपने जीवन की नौवी दहाई तक लिखने का सिलसिला जारी रखा. चंद दिन पहले ही श्रमिक दिवस पर वो अपने IFWJ के यूपी प्रेस क्लब के कार्यक्रम में शरीक हुए. दो दिन पहले ही उन्होंने पत्रकारों की जायज ज़रूरतों की दरख्वास्त के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट की थी.
के.विक्रम राव मतलब कलम की निरंतरता
ये कोई ताज्जुब की बात नहीं, हर कलमकार लिखता ही है, लेकिन उम्र की दूसरी दहाई से लेकर आठवीं दहाई पार करने के बाद भी निरंतर लिखने वाले को के.विक्रम राव कहते हैं. ये शख्सियत कोई मोजिज़ा, चमत्कार या सरस्वती की विशेष कृपा वाली लगती है. मुझे नहीं मालूम कि कोई और भी ऐसा लिखाड़ सहाफी है जो तकरीबन पचास बरस से निरंतर लिख रहा हो. हमने तो करीब तीस साल से ग़ौर किया है लेकिन राव साहब के हमउम्र बुजुर्ग पत्रकार और पाठक बताते हैं कि पचास सालों में शायद पचास दिन भी ऐसे नहीं गुजरे जब उनके कलम ने विश्राम किया हो.
पहले सिर्फ देश के प्रतिष्ठित अखबारों में ही पढ़ते थे, अब अखबारों के साथ सोशल मीडिया में भी कलम के इस जादूगर के आर्टिकल हर दिन छाए रहते हैं. अमूमन ये होता है कि जो अंग्रेजी की पत्रकारिता से जुड़ा होता है उसकी हिंदी का लेखन फ्लो कमज़ोर होता है, और जो हिंदी का होता है उसके लिए अंग्रेजी में धाराप्रवाह लिखना मुश्किल होता है. राव साहब की कलम की ये भी खासियत है कि अंग्रेजी और हिंदी में इनका समान अधिकार है। इसके अलावा तेलगु और दुनिया की तमाम भाषाओं के ये धनी हैं.
IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते दुनियाभर की पत्रकार बिरादरी से इनका सीधा रिश्ता है. श्रमजीवी पत्रकारों/अखबार कर्मियों की लड़ाई लड़ने वाले के.विक्रम राव ने इमरजेंसी के दौर में हुकूमत की तानाशाही से भी दो-दो हाथ किए थे. ये जेल भी गए. अतीत के इस सुनहरे साहस को याद कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन्हें फ्रीडम फाइटर पत्रकार का सम्मान भी दिया था. पत्रकारिता की यूनिवर्सिटी,..जानकारियों का खजाना..अतीत के किस्सों के हीरे-जवाहरातों से सजा महल.. भाषाओं का समुंदर.. विक्रम राव की तमाम विशेषताओं में मुझे प्रभावित करने वाली बात हमेशा यादगार रहेगी. बात उस जमाने की है जब मोबाइल फोन तो नहीं आया लेकिन लैंडलाइन फोन आम हो चला था. छोटे-बड़े किसी भी अखबार में किसी युवा पत्रकार की बायलाइन खबर छपती थी तो वो सुबह-सुबह नवोदित पत्रकार को फोन करके उसका हौसला बढ़ाते थे. मेरे पास भी उनके खूब फोन आते थे. खबर की तारीफ में उनका फोन आना हमारे लिए अवॉर्ड मिलने जैसा होता था.
इससे अंदाजा लगाइए कि वो शहर का हर अखबार पढ़ते थे और पत्रकारिता की नई पौध को वो हर सुबह प्रोत्साहन का पानी अवश्य डालते थे. खूबियों की खिचड़ी में आलोचना का एक चुटकी नमक भी ना हो तो जायकेदार खिचड़ी का मज़ा बदमज़ा हो जाता है. लोग कहते हैं कि इमरजेंसी के बाद राव साहब के लेखों में सत्ता पर सवाल उठाने का माद्दा नदारद दिखना पाठकों को निराश करता है.